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[ पट्टावली -पराग
सं० १३४१ की अक्षय तृतीया के दिन अपने पद पर श्री जिनचन्द्रसूरि को प्रतिष्ठित किया और उसी दिन राजशेखर गरिए को वाचनाचार्य-पद दिया, बाद में अष्टमी को सकल संघ से मिथ्यादुष्कृत देकर आप अन्तिम श्राराधना में लगे और वैशाख शुक्ल एकादशी को स्वर्गवासी हुए I (११) जिनचन्द्रसूरि - ( ३)
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सं० १३४२ के वैशाख शुक्ल १० के दिन श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने जालोर के श्री महावीर चैत्य में प्रीतिचन्द्र, सुखकीर्ति को और जयमञ्जरी, रत्नमञ्जरी तथा शीलमञ्जरी नामक क्षुल्लिकानों को दीक्षित किया, उसी दिन वाचनाचार्य विवेकसमुद्र गरिण का अभिषेक पद सर्वंशज गरिण को वाचनाचार्य पद और बुद्धि समृद्धि गरिगनी को प्रवर्तिनी - पद दिया और वदि ७ को सम्यक्त्वारोपादि नन्दिमहोत्सव हुआ, ज्येष्ठ कृष्ण ६ को रत्नमय अजितनाथ बिम्बों की और युगादिदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ विम्बों की तथा शान्तिनाथबिम्ब की, अष्टापदध्वजा-दण्ड की और अन्य अनेक जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा का महोत्सव श्री सामन्तसिंह के राज्य में श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने करवाया, ज्येष्ठ वदि ११ को वाचनाचार्य देवमूर्ति गरिण को अभिषेक पद दिया और मालारोपणादि कार्य हुए ।
सं० १३४४ के मार्ग सुदि १० को महावीर चैत्य में स्थिरकीर्ति गरिए को श्री जिनचन्द्रसूरि ने प्राचार्य पद दिया और दिवाकराचार्य नाम दिया ।
सं० १३४५ के भाषाढ सुदि ३ को मतिचन्द्र, धर्मकीर्ति की दीक्षा, वैशाख वदि १ को पुण्यतिलक, भुवनतिलक और चारित्रलक्ष्मी साध्वी को दीक्षा दी और राजदर्शनगरिए को वाचनाचार्य पद दिया ।
सं० १३४६ में माघ वदि १ को बाडड़ कारित स्वर्णगिरिस्थ श्री चन्द्रप्रभस्वामिदेवगृह के पास में रहे हुए युगादिदेव और नेमिनाथ के बिम्बों की मंडप के गोखलों में श्रौर सम्मेतशिखर के २० बिम्बों का स्थापना - महोत्सव हुआ, फाल्गुन सुदि ८ को शम्यानयन के प्रासाद में शान्तिनाथ की स्थापना हुई, देववल्लभ, चारित्रतिलक, कुशलकीर्ति, साधुनों की भोर रत्नश्री साध्वी को दीक्षा हुई, चैत्र वदि १ को पालनपुर से विहार किया,
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