Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 486
________________ चतुर्थ-परिच्छेद । [ ४६५ से कम ५०० गाथा गिने। ३८ पासत्यादि पांच कुदर्शनियों का संग न करे । ३६ सामायिक दिनप्रति बहुत करे । ४० प्रतिदिन एक विकृति वापरे, अधिक नहीं । ४१ दिन में पाव सेर से अधिक घृत न खाएँ। ४२ पन्द्रह दिन में दो उपवास करे । ४३ लोगस्स १० तथा १५ का कार्योत्सर्ग करे । ४४ एक स्थान में एक वर्ष उपरान्त न रहे । ४५ अपने लिये घर तथा द्वार न कराये । ४६ वस्त्र न धोए, ५ के उपरान्त अपने पास वस्त्र न रक्खे। कपड़ों की गठड़ी अन्यत्र न रखे। ४७ विस्तर, तकिया, गादो न वापरे । ४८ पलंग, खाट आदि पर सोवे नहीं, तथा बैठे नहीं। ४६ चौराहे पर न बैठे। ५० कलशिया एक, बाटको एक, इसके अतिरिक्त बर्तन न रखे । ५१ ज्वर प्रादि रोग में तीन दिन तक लंघन करे। ५२ स्त्री से एकान्त में बात न करे । ५३ ब्रह्मचर्य की नव वाड़ी पालने में यत्न करे । ५४ मास में एक बार वस्त्र धोवे । ५५ एकान्तर संघह न करे । ५६ चार कषाय न करे। ५७ कषाय उत्पन्न होने पर विगई का त्याग करे। ५८ किसी को अभ्याख्यान न दे । ५६ किसी को पीछे दोष न दे, चुगली न खाये। ६० सुगन्ध तेल शौक के लिए न वापरें । ६१ द्रव्य १२ के अतिरिक्त एक दिन में न ले। ६२ सुपारी, पान, इलायची प्रमुख का उपयोग न करे । ६३ उत्कट वस्त्र न पहिने । ६४ रेशमी वस्त्र का त्याग करे । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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