Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 485
________________ ४८४ ॥ [ पट्टावलो-पराग ११ स्थण्डिल सम्बन्धी शुद्ध भूमि की यतना करे। १२ प्रस्रवण कीडी प्रमुख जीव-जन्तु न हो वहां छोड़े। १२ मात्रा की कुंडी को छोड़कर अन्य बर्तन में मल त्याग न करें। १४ जल प्रमुख त्याज्य पदार्थ विना प्रमार्जन किये न परठे । १५ दूसरे को पीडाकारी वचन तथा हास्यादिक वचन न बोले । १६ शरीर को विना प्रमार्जन किये खाज न खणे । १७ पांच स्थावर जीवों का प्रारम्भ न करें। १८ निवारण से स्वयं पानी न ले, अगर लाए तो सब उपयोग करें। १६ बिना छाने पानी में कपड़े न धोएँ।। २० अपने हाथ से अग्नि का प्रारंभ न करें। २१ पंखे से हवा न लें। २२ वनस्पति अपने लिए न काटे । २३ त्रस जीव की पीड़ा के परिहार में नियम धारण करना : २४ त्रस जीव को मारने का त्याग करना । २५ सर्वथा असत्य का त्याग करना। २६ चोरी-यारी और प्रदत्तवस्तु लेने का त्याग । २७ मनुष्य तथा चतुष्पद जाति की स्त्री का स्पर्श तथा संघट न करना यदि, हो तो घृत का उस दिन त्याग करना । २८ अपने पास धन न रक्खे । २६ पिछली ४ घड़ी रात्रि में शयन का त्याग करें। ३० खुले मुंह न बोले, बोलते समय हाथ अथवा कपड़ा रखकर बोले । ३१ रात्रि के प्रथम पहर में न सोवें। ३२ रोगादि कारण के सिवाय दिन में न सोवें । ३३ प्रतिदिन तिविहार एकाशन करें । ३४ यथाशक्ति ग्रन्थि-सहित प्रत्याख्यान करे । ३५ त्रिकाल देव-वन्दन करे तथा अपने-अपने समय में आवश्यक तया प्रतिलेखनादि करे।। ३६ प्रतिदिन सात अथवा पांच चैत्य वन्दन करें। ३७ पढ़ने गुणने का अभ्यास करे, प्रतिदिन गाथा एक याद करे और कम ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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