Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 488
________________ चतुर्थ-परिच्छेद ] [ ४८७ ६२ घोड़ा प्रमुख वाहन पर न चढ़े। १३ महीने में एक वार नख उतराए । ६४ .कूलर, पकवान आदि बनवाकर अपने पास न रखे। .. ६५ मार्ग में खड़े रहकर अथवा चलते हुए स्त्री से वार्तालाप न करे । ६६ मार्ग में चल न सके तो यान में बैठे। ६७ पंचवर्ण वस्त्र न पहिने । १८ अकेली स्त्रियों के समूह में भोजन के लिए अथवा अन्य किसो कार्य के लिए न जाये। ६६ राग उत्पन्न करने वाले गीत न गाए, न सुने । १०० ब्राह्मण का संग न करे । १०१ दूसरे के घर में जाते खंखार करना । इसके अतिरिक्त दूसरी भी अनेक बातें जो संवरी की अपभ्राजना कराने वाली हों उनको न करे, तथा शाह कडुवा के लिखे हुए १०४ नियम शील पालने सम्बन्धी हैं, उनको धारण करना स्त्रियों के लिए शील पालन के ११३ नियम हैं ये सभी नियम यहां नहीं लिखे। . उस वर्ष श्री कडुवाशाह पाटन में अमरवाड़ा दरवाजा के बाहर जाते दो दिन एक योगीशाह को देखकर बहुत खुश हुआ और शाह को आग्रह करके कुछ प्राम्नाय दिए । यन्त्र, तन्त्र तथा रूपा सिद्धि भी दी, ऐसा वृद्धवाद है, परन्तु शाहश्री ने एक भी विद्या न चलाई, उन्होंने यावज्जीव के लिए एक घृत विकृति छूटी रखी। प्रतिदिन के लिए १० द्रव्य छूटे रखे, यावज्जोव एकाशन करने का नियम था, फिर भी महिने में १० प्रायम्बिल करते और श्री युगप्रधान का ध्यान धरते हुए दीक्षा की भावना रखते थे। ___ सं० १५४१ में शाहश्री बडौदे में शाह कुवरपाल के घर चातुर्मास रहे, वहां भट देपाल के साथ वाद हुआ, जैन बोल ऊपर रहा, वहां पर "जय जंग गुरु देवाधिदेव” यह स्तवन बनाया। सं० १५४२ में गन्धार में शाह देवकर्ण के घर पर चातुर्मास किया, वहां चैत्यवासियों के साथ चर्चा हुई, वहां पर शाह ने “सखिसार नयर गन्धार गांव" ऐसा वीर स्तवन बनाया। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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