________________
४८६ ]
६५ खेल, तेल इकट्ठा कर स्नान न करे ।
६६ अपने हाथ से न पकावे, न सचित्त वस्तु दूसरे से पकवावें ।
६७ हरी वनस्पति का आहार स्वाद की दृष्टि से न करे ।
६८ वर्षाकाल में खोपरा, खारक प्रमुख न वापरें । ६६ स्त्री सुनते राग न श्रालापें ।
७० आभूषण न पहिने |
७१ दो पुरुष एक पथारो पर न सोवे ।
७२ स्त्री सोती हो वहां विना अन्तर के पुरुष न सोवें ।
७३ लोकायतिक के यहां का अन्न जल न लेवें ।
७४ जिम पर देव द्रव्य का देना हो और वह दे न सकता हो उसके वहां न जीमे ।
७५ भुखायति के यहां भोजन न करे ।
७६ अकेली स्त्री को न पढ़ाएं।
७७ मन्दिरजी की हद में न सोवें ।
[ पट्टावली-पराग
७८ अपने सगे के लिए कोई चीज न मांगे ।
७६ दूसरे का द्रव्य अपने पास हो तो उसके स्वजन को याज्ञा विना धर्मस्थानक में न खर्चे ।
८० निरन्तर एक घर में दो दिन न जीमे ।
८१ जिसके यहां श्राद्ध-संवत्सरी हो उसके यहां तोन दिन नहीं जीमे ।
८२ उत्कट आहार का उपयोग न करे ।
८३ सिघोड़े लीले, सुखे, न खाए ।
८४ उगला पहनने की छूट ।
८५ दूसरों के बच्चों को प्यार न करे ।
८६ स्वजन के प्रतिरिक्त लोग जीमते हो वहां न जोमे ।
८७ कन्दोई के पक्कान्न की यतना ।
८८ रात में तैयार किये हुए अन्न को न जीमे ।
८६ गृहस्थ के घर बैठकर गप्पे न लड़ायें । ६० जूते न पहने ।
६१ रथ, गाड़ो, यान पर न बैठे ।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org