Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 484
________________ चतुर्थ- परिच्छेद ] [ ४८३ सं १५२५ में वीरमगांव में ३०० घर अपने मत में लिए, सं० १५२६ में सलक्खपुर में चातुर्मास्य कर अनेक मनुष्यों को प्रतिबोध किया और १५० घर अपने मत में लिये, सं० १५२८ में श्री अहमदाबाद में चतुर्मास्य किया, ७०० घर अपने मत में प्रतिबोध किये । सं० १५२६ में खम्भात में चतुर्मास किया ५०० घर को प्रतिबोध किया । सं० १५३० में मांडल में चतुर्मास किया और ५०० घरों को प्रतिबोध दिया। सं० १५३१ में सूरत में चतुर्मास, सं० १५३२ में भरुच में चतुर्मास किया, १५३३ में चांपानेर चतुर्मासक किया, घर ३०० को प्रतिबोध किया तथा थराद में ६०० घर अपने मत में किये । सं० १५३६ में राधनपुर चतुर्मास, १५३७ में मोखाड़ा में चतुर्मास किया तथा सोईगांव आदि में अपना मत फैलाया । सं० १५३८ में सर्वत्र विहार किया । सं० १५३६ में नांडलाई में ऋषि भारणा के साथ वाद किया और शास्त्रानुसार प्रतिमा को प्रमाणित किया और लुंकों के १५० घर अपने मत में लिये । सं० १५४० में पाटन में चतुर्मासक किया और ६०० घर कडुआ के समवाय में हुए, शाह खीमा, शाह तेजा, कर्मसिंह, शाह नाकर द्वादश व्रतधारक, शाह श्रीकृत १०१ नियमों के पालक संवरी गृहस्थ के वेश में रहकर दींक्षा का भाव रक्खे, संवर का खप करे । १ नीची नजर रखकर बने । २ रात्रि में भूमि का प्रमार्जन किये विना न चले । ३ खास कारण बिना रास्ते चलते हुए बातचीत न करें, कोई प्रश्न करे तो यह कहे कि ज्यादा बातें स्थान पर करना । ४ औषध को छोड़कर सच्चित्त आहार न खादें । ५ दिवस की पिछली दो घड़ी दिन रहते, चउविहाहार का पच्चक्खान करे, ६ भोजन करते समय अन्नकरण न बिखेरे, न झूठा छोड़े, प्रमाणातिरिक्त भोजन न करे, न बिना इच्छा के खाएँ । ७ भोजन करते न बोले । ८ द्विदल अन्न कच्चे गोरस के साथ न खाएं । ९ छुटे हाथ कोई पदार्थ न फेंके । १० पाट पाटला प्रमुख किसी भी वस्तु को न घसीट कर ले जाय । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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