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[ पट्टावली-पराग
(४५) श्री जिनपतिसरि -
प्रापकी दीक्षा १२१८ को साल में दिल्ली में हुई थी और संवत् १२२३ में श्री जयदेवाचार्य द्वारा भापको पद-स्थापना हुई थी। सं० २७० में पालनपुर में स्वर्गवास ।
(४६) श्री जिनेश्वरम् रे -
आपकी दीक्षा सं० १२६५ में, १२७० में सर्वदेवाचार्य द्वारा जालोर में आचार्य-पद, इनके समय में ही १२१४ में पांचलिक मत की उत्पत्ति हुई । १२८५ में चित्रावालगच्छीय जगच्चन्द्रसूरि से तपागण प्रसिद्ध हुआ । सं० १३३१ में प्रापका स्वर्गवास हुमा। इनके समय में जिनसिंहसूरि से लधुखरतर शाखा प्रकट हुई ।
(४७) श्री जिनप्रबोधसरि -
इनका सं० १३३१ में जालोर में प्राचार्य-पद हुमा और स्वर्गवास १३४१ में ।
(४८) श्री जिनचन्द्रसरि -
सं० १३३२ में जालोर में दोक्षा, सं. १३४१ में जालोर में पदमहोत्सव, सं० १३७६ में स्वर्गवास । इनके समय में "खरतरगच्छ" की "राजगच्छ" के नाम से प्रसिद्धि हुई थी।
(४६) श्री जिनकुशलसरि
सं० १३३० में जन्म, १३४७ में दीक्षा, सं० १३७७ में राजेन्द्राचार्य द्वारा सूरिमन्त्र दिया गया। सं० १३८६ में स्वर्ग प्राप्ति ।
(५०) श्री जिनपसरि -
सं० १३८६ में प्राचार्य तरुणप्रभ द्वारा सूरिमन्त्र दिया गया, सं० १४०० वैशाख सुदि १४ के दिन पाटण में स्वर्गवास ।
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