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गृहस्थों का गच्छ - प्रवर्तन
लौकामत - गछ की उत्पत्ति
सूत्रकाल में स्थविरों के पट्टकम की यादी को "थेरावली" अर्थात् "स्थविरावली" इस नाम से पहिचाना जाता था, क्योंकि पूर्वधरों के समय में निर्ग्रन्थश्रमण बहुधा वसति के बाहर उद्यानों में ठहरा करते थे और पृथ्वीशिलापट्ट पर बैठे हुए ही श्रोतागणों को धर्मोपदेश सुनाते थे, न कि पट्टो पर बैठकर । देश, काल, के परिवर्तन के वश श्रमणों ने भी उद्यानों को छोड़कर ग्रामों नगरों में ठहरना उचित समझा और धीरे-धीरे जिननिर्वाण से ६०० वर्ष के बाद अधिकांश जैन श्रमणों ने वसतिवास प्रचलित किया। गृहस्थ वर्ग जो पहले "उपासक" नाम से सम्बोधित होता था वह धीरे-धीरे नियत रूप से धर्म-श्रवण करने लगा, परिणाम स्वरूप प्राचीन श्रमणोपासकश्रमणोपासिका-समुदाय श्रावक श्राविका के नाम से प्रसिद्ध हुमा । यह सब होते हुए भी तब तक श्रमरणसंघ धार्मिक मामलों में अपनी स्वतंत्रता कायम रक्खे हुए था।
उपर्युक्त समय दर्मियान जो कोई निर्ग्रन्थ श्रमरण अपनी कल्पना के बल से धार्मिक सिद्धान्त के विरुद्ध तर्क प्रतिष्ठित करता तो श्रमण-संघ उसको समझा-बुझाकर सिद्धान्तानुकूल चलने के लिए बाध्य करता, यदि इस पर भी कोई अपने दुराग्रह को न छोड़ता तो श्रमण-संघ उसको अपने से दूर किये जाने की उद्घोषणा कर देता । श्रमण भगवान् महावोर को जीवित अवस्था में ही ऐसी घटनाएं घटित होने लगी थीं। महावीर को तीर्थ
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