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चतुर्थ परिच्छेद ]
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तथा सम्प्रदाय की मान्यता का निर्देश करके इस विषय को बढ़ाना तो बेकार ही होगा।
लौंका के जन्म-स्थान और जाति के सम्बन्ध में तो इतना अज्ञान छाया हुआ है कि उसका किसी प्रकार से निर्णय नहीं हो सकता। कोई इनको दशा-श्रीमाली और लीम्बड़ी में जन्मा हुना मानते हैं, कोई इनको प्रोसवाल जातीय अरहटवाड़ा का जन्मा हुआ मानते हैं, कोई इनको दशा-पोरवाल जाति में पाटन में जन्मा हुआ मानते हैं। कोई इनको नागनेरा नदी-तट के गांव में जन्म लेने वाला मानते हैं, कोई इनको जालोर मारवाड़ समीपवर्ती पौषालिया निवासी मानते हैं, कोई इनका जन्म-स्थान जालोर को मानते हैं, तब स्वामी जेठमलजी, श्री अमोलक ऋषिजी, श्री सन्तबालजी और शा० वाड़ीलाल मोतीलाल लौंकाशाह को अहमदाबाद निवासी मानते हैं।
पूर्वोक्त लौंकाशाह के संक्षिप्त निरूपण से इतना तो निश्चित हो जाता है कि लोकाशाह १५वीं शताब्दी के अन्तिम चरण से १६वीं शती के द्वितीय चरण तक जीवित रहने वाले एक गृहस्थ व्यक्ति थे । लौका ने मूर्तिपूजा के अतितिक्त अनेक बातों को प्रशास्त्रीय कहकर खण्डन किया था, परन्तु उनके अनुयायी ऋषियों ने एक मूर्तिपूजा के अतिरिक्त शेष सभी लौंका द्वारा निषिद्ध बातों को मान्य कर लिया था और कालान्तर में लौंकागच्छ के अनुयायो यतियों और गृहस्थों ने मूर्तिपूजा का विरोध करना भी छोड़ दिया था। आज तक कई स्थानों में लुकागच्छ के यति विद्यमान हैं जो मूर्तियों के दर्शन करते हैं और उनकी प्रतिष्ठा भी करवाते हैं और लौकागच्छ का अनुयायी गृहस्थवर्य जिन-मूर्तियों को पूजा भी करता है ।
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