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तृतीय-परिच्छेद ]
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समक्ष भेंट की। वाचक, पाठक साधुवर्ग को सुवर्ण रूप्य मुद्राए तथा महावस्त्रादि ज्ञानोपकरण भेंट दिए ।
श्री गुरु ने भी चौरासी-गच्छीय समस्त आचार्य तथा सहस्र साधुनों को महावख और प्रत्येक को दो-दो रूप्य-मुद्राएं अर्पण को।
ऊपर चौरासी गच्छ के प्राचार्यो तथा सहस्राधिक साधुनों को श्रीजी द्वारा महावस्त्र और वस्त्रादि दो-दो रुपयों के साथ देने की बात कही है तब आगे जाकर नीचे का फिकरा लिखते हैं -
__ "फाल्गुन सुदि २ दिने सर्व तपागच्छीयावि प्राचार्य साधूनुपत्यकायां संरोध्य श्रीजिनमहेन्द्रसूरयः सर्वसंघपतिभिः सार्द्ध श्रीमूलनायकजिनगृहाग्रतो गत्वा विधिना सर्वेषां कण्ठेषु संघमालाः स्थापिताः, अन्यगच्छीयाचार्याणां कौशिकानामिव मनोभिलाषं मनस्येव स्थितं, खरतरगच्छेश्वरसूर्योदयतेज प्रकरत्वात्तदनुत्तीर्य गीतगानतुर्यवाद्यमानगजाश्वशिविकेन्द्रध्वजादिमहा पादलिप्तपुरे जिनगृहे दर्शनं विधाय तपागच्छीयाचार्यस्थितोपाश्रयाग्रतो भूत्वा संघावासेऽयासिषुः भूयोऽपि तत्रस्थचतुरशीतिगच्छीय द्वादशशत साधुवर्गेभ्यो महावस्त्र-रूप्यमुद्रायुग्मं प्रत्येकं प्रदत्तानि, तदवसरे श्रीमत्पूज्य. बहुतरद्रव्यव्ययं कृतं, तत्सम्बन्धः पूर्ववत् पुनः श्री मदादिजिनकोशकुंचिकायुग्मं श्रीखरतरगरणश्राद्धस्तपाश्रद्धालुभ्यः सकाशाद होतं कुंचिकायुग्म तत्पार्वे रक्षितं ।"
पट्टावली का ऊपर जो पाठ दिया है इससे अनेक गुप्त बातें ध्वनित होती हैं। फाल्गुन सुदि २ के दिन, जिनमहेन्द्रसूरिजी पादलिप्तपुर में उपस्थित संघपतियों को माला पहिनाने वाले थे, परन्तु दादा की टूङ्क में मूलनायकजी के सामने माला पहिनाने में तपागच्छीय तथा अन्यगच्छीय सभो प्राचार्य विरुद्ध थे, जिसके परिणामस्वरूप जिनमहेन्द्रसूरिजी ने राजकीय बल द्वारा अन्य सभी गच्छों के प्राचार्यो' तथा साधुओं को ऊपर जाने से रुकवा दिया था, फिर आपने निर्भयता से दादा के सामने संघ. पतियों को मालायें पहिनाने का पुरुषार्थ किया था। पट्टावली के कथना. नुसार यह घटना खरतरगच्छ के सूर्योदय के तेज का प्रकाश था, जिसके
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