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तृतीय-परिच्छेद ]
उत्सव कर चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को बूजड़ी से संघ का प्रस्थान हुअा, श्रीपूज्य भी लब्धिनिधान उपाध्याय, वा० अमृतचन्द्र गरिण प्रमुख १५ साधु और जद्धि महत्तरा प्रमुख ८ साध्वियों के परिवार सहित चले। क्रमशः सघ आबू पहुँचा और विमलविहार में श्री आदिनाथ और लूणिकविहार में नेमिनाथ प्रमुख तीर्थङ्करों की यात्रा की। विधि-संघ ने इन्द्रपद आदि चढ़ावों में तथा अन्य उत्सवों में ५०० रूप्य टंक सफल किये, वहां से संघ के साथ श्रीपूज्य मुडस्थला (मुगुथला) गांव जाकर जिनपतिसूरि की मूर्ति को वन्दन किया। वहां से संघ जीरापल्ली पहुँचा, वहां भी युगादिदेव के प्रासाद में २०० टंक खर्च किये। वहां से प्रयाण कर संघ पारासरण गया और नेमिनाथ प्रमुख पंचतीर्थों की यात्रा की। इन्द्रपदादि के चढ़ाबों द्वारा १५० रूप्य टंक खर्च किये, वहां से संघ तारंगा पहुँचा और अजितनाथ की यात्रा की, वहां भी इन्द्रपदादि के चढ़ावों में २०० रूप्य टंक खर्च किये। वहां से वापस लौट कर संघ त्रिशृङ्गमक पहुँचा। श्रीपूज्य ने वहां के सर्व चैत्यों की यात्रा को, संघ ने इन्द्रपदादि द्वारा पार्श्वनाथ के प्रासाद में १५० रूप्य टक खर्च किये। वहां से लौट कर चन्द्रावती के मार्ग से श्रीपूज्य बूजड़ी पधारे और वर्षा चातुर्मास्य वहीं किया।
राजाओं का मोह -
खरतरगच्छ की पट्टावलियों तथा गुर्वावलियों के लेखकों को राजाओं तथा महाराजानों का बड़ा मोह था, एक साधारण गांव के जागीरदार अथवा कोली ठाकुर को भी राजा कहकर अपने गुरुत्रों के नगरप्रवेशों का महत्त्व बढ़ाया है, एक छोटे में गांवड़े का गिरासिया ठाकुर भी उनकी दृष्टि में बड़ा राजा तथा राजाधिराज था, इस प्रकार के बृहद् गुर्वावली में प्राने वाले नामों की एक लम्बी नामावली देकर खरतरगच्छ के एक लेखक महोदय ने "खरतरगच्छ गुर्वावलो का ऐतिहासिक महत्त्व' इस शीर्षक के नीचे नामावलि में सूचित राजा; महाराजा, जागीरदारों के संबन्ध में चर्चा की है। प्रस्तुत लेख में बृहद् गुर्वावली को प्रशंसा करने में लेखक ने सोमोल्लंघन कर दिया है । कई स्थानों में तो गुर्वावली के खरे अर्थ को छिपाकर
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