________________
३६६ ]
[ पट्टावली-पराग
भगवान महावीर चतुर्थारक के तीन वर्ष और साढ़े आठ मास शेष रहे तब कातिको अमावस्या को मुक्ति प्राप्त हुए।
महावीर के पट्ट पर इन्द्रभूति गौतम-बीर निर्वाण से १२ वर्ष के बाद मोक्ष, गौतम स्वामी की परम्परा आगे नहीं बढ़ी इसलिए ये पट्टधरों में नहीं गिने जाते।
(१) महावीर के पट्ट पर सुधर्मस्वामी, जिननिर्वाण से २० वर्ष के बाद मुक्ति।
(२) जम्बूस्वामी जिननिर्वाण से ६४ वर्ष के बाद मुक्ति प्राप्त हुए। (३) प्रभवस्वामी वीरात् ७५ वर्षे स्वर्ग प्राप्ति । (४) शय्यम्भवसूरि वीरात् ६८ वर्षे स्वर्ग गमन । (५) श्री यशोभद्रसूरि का वीरात् १४८ वर्षे स्वर्ग गमन । (६) संभूतविजय का वीरात् १६५ वर्षे स्वर्गवास । (७) भद्रबाहु स्वामी-वीरात् १७० वर्षे परलोकगमन । (८) स्थूलभद्र स्वामी-वीरात २१६ वर्षे स्वर्गवास ।
(६) आर्य महागिरि-वीरात् २४६ वर्षे स्वर्गवास । ... (१०) आर्य सुहस्ती-बीरात् २६५ वर्षे स्वर्गवास ।
(११) सुस्थितसूरि-कोरात् ३४३ वर्ष के बाद स्वर्ग। इन्हीं से हमारा सम्प्रदाय कोटिकगच्छ कहलाया।
(१२) श्री इन्द्रदिन्नसूरि, (१३) श्री दिन्नसूरि (१४) श्री सिंहगिरि, इस समय में प्राचार्य पादलिप्तसूरि, वृद्धवादिसूरि, तथा सिद्धसेन विवाकर हुए।
(१५) श्री वज्रस्वामी का जन्म वीरात् ४६६ में, निर्वाण से ५८४ में स्वर्गवास।
(१६) वज्रसेनाचार्य-नागेन्द्र, चन्द्र, निवृति, विद्याधर को दीक्षा और चार कुलों की उत्पत्ति ।
(१७) श्री चन्द्रमूरि - इस समय में प्रार्य रक्षित युगप्रधान हुए। (१८) समन्तभद्रसूरि - ( वनवासी)
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org