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तृतीय-परिच्छेद ]
[ ३२५ वैशाख वदि १४ को भीमपल्ली गए और वैशाख सुदि ७ को शैलमय युगादिदेव बिम्ब, चतुर्विंशतिजिनालययोग्य १(२)४ बिम्ब, इन्द्रध्वज, श्री अनन्तनाथदण्ड ध्वज, जिनप्रबोधसूरि स्तूतमूर्ति दण्डध्वजों के अतिरिक्त अनेक पाषाण तथा पित्तलमय जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा का महोत्सव हुआ । ज्येष्ठ वदि ७ को नरचन्द्र, राजचन्द्र, मुनिचन्द्र, पुण्यचन्द्र साधुनों को और मुक्तिलक्ष्मी, मुक्तिश्री साध्वियों को दोक्षा हुई ।
सं० १३४७ मार्ग० सुदि ६ पालनपुर में सुमतिकोति की दीक्षा और नरचन्द्रादि साधु-साध्वियों की उपस्थापना, मालारोपण आदि महोत्सव हुमा, वहां से संघ मेलापक के साथ श्री तारणगढ़ में अजितनाथ की यात्रा की, पौषवदि ५ को वीजापुर श्रावक समुदाय के साथ गए, श्री जालोर में जिनप्रबोधसूरि के स्तूप में मूर्ति स्थापनोत्सव तथा दण्डध्वजारोपण उत्सव माघ सुदि ११ को सा० अभयचन्द्र ने करवाया और चैत्र वदि ६ को वीजापुर में अमररत्न, पद्मरत्न, विजयरत्न साधुओं को दीक्षा हुई।
सं० १३४८ के वैशाख सुदि ३ को पालनतुर में वीरशेखर, अमनश्री की दीक्षा हुई, त्रिदशकीति गरिण को वाचनाचार्य पद दिया गया, उसी वर्ष में श्रीपूज्य ने सुधाकलश, मुनिवल्लभ साधुओं के स.थ गणियोग का तप किया।
सं० १३४६ भाद्रपद वदि ८ को अभयचन्द्र श्रावक को संस्तारक दीक्षा, अभयशेखर नाम दिया, मार्गशीर्ष वदि २ को यशःकीर्ति को दोक्षा ।
सं० १३५० वैशाख सुदि ६ को भाण्डा० झांजन श्रावक को संस्तारक दीक्षा दी और नरतिलक राजर्षि नाम रक्खा ।
सं० १३५१, माघ वदि १ पालनपुर में युगादिदेव चैत्र में महाकोर प्रमुख ६४० जिनबिम्बों को प्रतिष्ठा की और ५ को मालारो णादि महोत्सव हुअा, विश्वकीर्ति साधु की और हेमलक्ष्मी साध्वी की दोक्षा हुई।
सं० १३५२ में राजशेखर गरिण ने बड़गांव में विहार किया और वहां से कौशाम्बी, वाराणसी, काकन्दो, राजगृह, पावपुरी नालन्दा, क्षत्रिय
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