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तृतीय-परिच्छेद ]
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सं० १३३३ के माघ वदि १३ को जालोर में कुशलश्री गणिनी को प्रवर्तिनी-पद दिया, इसी वर्ष में सा० क्षेमसिंह और चाहडकी तरफ से संघ प्रयाण की तैयारी हुई, अनेक गांवों से विधि-संघ का समुदाय इकट्ठा हुआ और उसके उपरोध से श्री शत्रुञ्जयादि महातीर्थों की यात्रा के लिए श्री जिनप्रबोधसूरि, श्री जिनरत्नसूरि, लक्ष्मीतिलकोपाध्याय, विमलप्रज्ञोपाध्याय, वा० पद्मदेव, वा० राजगणि प्रमुख २७ साधु और प्रवर्तिनी ज्ञानमाला गणिनी प्र० कुशलश्री, प्र. कल्याण ऋद्धि प्रमुख २१ साध्वियों के परिवार सहित जालोर से चैत्र वदि ५ को संघ रवाना हुमा, वहां से श्रीमाल में शान्तिनाथ विधिचैत्य में द्रम्म १४७६ विधिसंघ ने सफल किये, वहां से पालनपुर प्रादि नगरों की यात्रा करता हुआ संघ तारंगातीर्थ पहुंचा, वहां इन्द्रमाला प्रादि के चढावे हुए, अनुमानतः द्रम्म ४ हजार मालादि लेकर कृतार्थ किये, वहां से स्तम्भनक तीर्थ में अनुमानतः ७००० द्रम्म के चढावे दिये, वहां से भरुच जाकर संघ ने ४७०० द्रम्म खर्चे, वहां से संघ शत्रुञ्जय पर पहुँचा, शत्रुञ्जय पर इन्द्रमालादि के चढ़ावे हुए भौर अनुमानतः सब मिलकर २५००० द्रम्म संघ ने खर्च किये।
ज्येष्ठ वदि ७ को युगादिदेव के सामने अापने जीवानन्द साधु और पुण्यमाला, यशोमाला, धर्ममाला, लक्ष्मीमाला को दीक्षा दी। मालारोपगादि का उत्सव हुमा, श्री श्रेयांस-विधिचैत्य में ७०८ द्रम्म, उज्जयन्त में ७५० द्रम्म, इन्द्रादि के परिवार की तरफ से २१५० और नेमिनाथ की माला के द्रम्म २०००, एकन्दर गिरनार पर २३००० द्रम्म की आमदनी हुई।
इस प्रकार स्थान-स्थान जिनशासन की उन्नति करता हुमा, सा. क्षेमसिंह विधिसंघ के साथ महातीर्थो की यात्रा करके भाषाढ़ सुदि १४ को वापस जालोर आया।
सं० १३३४ मार्ग सुदि १३ को रत्नबृष्टि गणिनी को प्रवर्तिनी-पद दिया, वैशाख वदि ५ को भीमपल्ली में श्री नेमिनाथ तथा श्री पार्श्वनाथ के बिम्बों की, जिनदत्तसूरि की मूर्ति की, शान्तिनाथ के देवालय के ध्वजदण्ड की और गौतमस्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा का महोत्सव कराया, वैशाख
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