________________
२९६ ]
[ पट्टावलो-पराग
वाचनाचार्य-पद दिया, महावन में अजितनाथ के चैत्य की प्रतिष्ठा की, इन्द्रपुर में शान्तिनाथ के चैत्य पर कलश, दण्डध्वज का रोपण किया। नगला गांव में अजितनाथ के चैत्य की प्रतिष्ठा की।
सं० १२२२ में बादली नगर में पार्श्वनाथ चैत्य पर दण्डध्वज-कलश की प्रतिष्ठा की और अम्बिका शिखर पर कलश की प्रतिष्ठा कराके रुद्रपल्लो की तरफ विहार किया। उसके प्रागे नरपालपुर में किसी ज्योतिष-शास्त्र के जानकार पं० से ज्योतिष सम्बन्धी चर्चा हुई, फिर रुद्रपल्ली विचरे। वहां पद्मचन्द्राचार्य ने उनसे कुछ बातें पूछीं, जिनका इन्होंने उत्तर दिया। रुद्रपल्ली से विहार करते हुए चौरचिन्दानक ग्राम के समीप उनका साथ उतरा। वहां म्लेच्छों के भय से प्राकुल हुए साथ के लोगों को पूछा - प्राकुल क्यों हो? साथ वालों ने कहा - म्लेच्छों का लश्कर पा रहा है, प्राचार्य ने कहा- तुम सर्व वस्तु वृषभादि एकत्र करलो। प्राचार्य श्री जिनदत्तसूरि रक्षा करेंगे। यह कह कर उन्होंने पड़ाव के चारों ओर अपने दण्ड से गोलाकार लकीर खींच ली। सार्थ लोग सब बोरियों पर बैठे हुए घोड़ों पर चढ़े हुए हजारों म्लेच्छों को देखते हैं, परन्तु म्लेच्छ लोग किसी को नहीं देखते, वे केवल कोट को ही देखते हैं। निर्भयता होने के बाद वहां से चलकर सार्थ के साथ प्राचार्य अगले गांव गये। दिल्ली वास्तव्य श्रावकों ने प्राचार्य का आगमन सुना, वे उनके सामने गये । अपने महल पर बैठे हुए राजा मदनपाल ने वस्त्रालंकारों से सज्ज श्रावकों को जाते देखकर अपने प्रादमियों से पूछा - आज क्या मामला है, सब लोग बाहर क्यों जा रहे हैं ? राजपुरुषों ने कहा - देव, इनके गुरु मा रहे हैं। ये लोग भक्तिवश उनके सामने जाते हैं। कुतूहल से राजा ने कहा - महासाधनिक पट्टघोड़े को तैयार कर और काहलिकहस्त द्वारा काहला को बजवा, जिससे लोग जल्दी तैयार होकर यहां आ जाय । आदेश होने के बाद हजार घोड़े सवारों से परिवृत राजा श्रावकों के पहले प्राचार्य के पास पहुँच गया। प्राचार्य के साथ पाए हुए लोगों ने उपहार आदि द्वारा राजा का सत्कार किया। प्राचार्य ने मधुर वाणी से राजा को धर्म सुनाया, राजा ने आचार्य को अपने नगर में पाने के लिए प्रार्थना की,
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org