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प्रथम-परिच्छेद ]
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वन्दन करने “अन्तरंजिका" को जा रहा था, उस समय एक परिव्राजक अपने पेट पर लोह का पट्टा बांधकर जामुन की टहनी हाथ में लिये चल रहा था। पूछने पर वह कहता था, ज्ञान से पेट फट न जाय इसलिए पेट पर लोहे का पट्टा बांधा है । जम्बू की टहनी के सम्बन्ध में कहा : जंबूद्वीप में मेरा कोई प्रतिवादी नहीं है। उसने नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि परप्रवाद सभी शून्य हैं, लोगों ने उसकी इस स्थिति को देख "पोट्टसाल" नाम रख दिया। गुरु के पास जाते रोहगुप्त ने ढिण्ढोरे को रोका और कहा : मैं याद करूंगा, बाद में वह अपने प्राचार्य के पास गया और कहा : मैंने परिव्राजक का ढिण्ढोरा रुकवाया है। प्राचार्य ने कहा : बुरा किया, क्योंकि वह विद्याबली है, बाद में पराजित हो जायगा तो भी विद्यामों से सामना करेगा। प्राचार्य ने रोहगुप्त को परिव्राजक को विद्याओं का पराजय करने वालो प्रतिविद्याओं को देकर अपना रजोहरण दिया और कहा : विद्यानों के अतिरिक्त कोई उपद्रव खड़ा हो जाय, तो इसको घुमाना, अजेय हो जायगा। विद्याओं को लेकर रोहगुप्त राजसभा में गया और बोला, यह क्या जानता है ? भले ही यह अपना पूर्वपक्ष खड़ा करे। परिव्राजक ने सोचा, ये लोग चतुर होते हैं। अतः इन्हीं का सिद्धान्त ग्रहण कर वाद करूं । उसने कहा : संसार में "जीव" मोर "अजीव" ये दो राशियां होती हैं। रोहगुप्त ने विचार किया, इसने हमारा ही सिद्धान्त स्वीकार किया है तो इसकी बुद्धि को चक्कर में डालने के लिए मैं तीन राशियों की स्थापना करूं, यह सोचकर वह बोला : राशि दो नहीं पर तीन हैं-जीव, अजीव, नोजीव । इनमें शरीरधारी मनुष्य, पशु आदि संमारी जीवों का समावेश जीव राशि में होता है। घर, वस्त्रादि प्राणहोन सभी पदार्थ "मजीव राशि" में आते हैं और तत्काल मूल शरीर से जुदा पड़ी हुई छिपकली की पूछ आदि "नोजीव" में जानना चाहिये। जिस प्रकार दण्ड का आदि, मध्य, अन्त भाग होता है उसी प्रकार सर्व पदार्थ तीन राशियों में बंटे हुए हैं-जीवों में, अजीवों में और नोजीवों में। इस प्रकार रोहगुप्त द्वारा तकीवाद में निरुत्तर हो जाने से परिव्राजक ने रुष्ट होकर अपनी विद्याएँ रोहगुप्त पर छोड़ी, रोहगुप्त ने भी उन पर प्रतिपक्ष-विद्याएँ छोड़ी। जब परिवाजक का कोई वश नहीं चला तब उसने अपनी संरक्षित गर्दभी विद्या
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