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[ पट्टावली-पसग
नाम
७८० के लगभग रह सकता है । इसके बाद विबुधप्रभ जयानन्द, रविप्रभ, यशोदेवसूरि, प्रद्युम्नपूरि, उपधान-प्रकरणकार मानदेवसूरि इन ६ प्राचार्यो के सत्तासमय के सम्मिलित १७५ वर्ष मान लेने पर पट्टधरों का सत्तासमय ६५५ तक पहुंचेगा। इस प्रकार उपधानप्रकरणकार मानदेवसूरि का भी अन्तिम समय ६५५ में पहुंचता है, जो संगत है। इनके बाद प्राचार्य विमलचन्द्र, उनके पट्टधर प्राचार्य श्री उद्योलनसूरि और इनके पट्टधर सर्वदेवसूरि का समय विक्रम की ११वों शती के प्रथम चरण तक पहुँचता है, क्योंकि ६५६ से विमलचन्द्रसूरि का समय प्रारम्भ हो जाता है और ६९४वें में उनके शिष्य उद्योतनसूरि, सर्वदेवसूर को पट्ट पर स्थापित करते हैं, तब विक्रम सं० १०१० में सर्वदेवसूरि रामसन्यपुर में चन्द्रप्रभ जिन की प्रतिष्ठा
ऊपर लिखे अनुसार मुनिसुन्दरसूरि की गुर्वावली में दिये हुए समय में संशोधन करने से सत्तासमय का समन्वय दोकर पारस्परिक विरोध मिट सकता है।
"सत्तरस बुड्ढदेको १७, सूरी पज्जोमरणो अठारसमो १८ । छगूणवीसइमो, सूरी सिरिमाणवेवगुरू १९ ॥७॥ सिरिमारणतुंगसूरि २०, वीसइमो एगवीस सिरिवीरो २१ । बावीसो जयदेवो २२, देवारणको य तेवीसो २३ ॥८॥ चउवीसो सिरिविक्कम २४, नरसिंहो पंचवीस २५ छन्वीसो।
सूरीसमुद्द २६ सत्तावीसो सिरिमारणदेव गुरू २७ ॥६॥"
'प्राचार्य समन्तभद्र के पट्टवर १७वें श्री वृद्धदेवसूरि, वृद्धदेवरि के पट्ट पर १८वें प्रद्योतनसूरि, प्रद्योतन के पट्ट पर श्री मानदेवसूरि, म.नदेवसूरि के पट्ट पर श्री मानतुगसूरि, मानतुगसूरि के पट्ट पर श्री वीरसूरि, वीरसूरि के पट्ट पर श्री जयदेवसूरि, जयदेवसूरि के पट्ट पर श्री देवानन्दसूरि, देवानन्दसूरि के पट्ट पर श्री विक्रमसूरि, विक्रमसूरि के पट्ट पर श्री नरसिंहसूरि नरसिंहसूरि के पट्ट पर श्री समुद्रसूरि, समुद्रसूरि के पट्ट पर श्री मानदेवसूरि २७वें पट्टधर हुए ।
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