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द्वितोय-परिच्छेद ]
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२१ धर्मघोषस रि ९२ निर्वृतिस रि २३ उदितसूरि २४ चन्द्रशेखरसूरि २५ सुघोषसूरि - २६ महीधर सूरि -- २७ दानप्रियसूरि २८ मुनिचन्द्रसूरि २६ दयानन्दसूरि - ३० धनमित्रसूरि - ३१ सोमदेवसूरि -
वि० सं० ३६७ में स्वर्गवास । वि० ४२५ में स्वर्गवास ।
वि० ४७० में स्वर्गवास । वि० ५१२ में स्वर्गवास । एक समय विचरते हुए मथुरा गये, वहीं पर अन्य ५०० साधुनों का समुदाय सम्मिलित हुअा है । उसमें देवद्धि गगि भी सम्मिलित हैं, देवधि ने संघ-सभा में कहा - इस समय भी साधु अल्प. विद्यावान् अबहुश्रु त होगए हैं, तो भविष्य में तो क्या होगा, इस वास्ते पाप सब को सम्मति हो तो सत्र पुस्तकों पर लिखवा लें, देवद्धि का प्रस्ताव सबने स्वीकार किया। सर्व सत्र पुस्तकों पर लिख लिये गए, आज से विद्या पुस्तक पर हो यह सोचकर सब सत्र पुस्तक भण्डार में रक्खे । उसके बाद सोमदेवस रि विक्रम संवत् ५२५ में स्वर्गवासी हुए, पूर्वश्रुत का तब से विच्छेद हो गया।
३२ गुणन्धरसूरि - ३३ महानन्दसूरि -
महानन्दस रि ने विद्यानन्द दिगम्बराचार्य को वाद में जीता, महानन्द ने दक्षिणा-पथ में भी विहार किया तथा "तर्कमंजरी" को रचना भी की, विक्रम सं० ६०५ में स्वर्गवासी हुए ।
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