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द्वितीय-परिच्छेद
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का "वित्रिपक्ष" यह नाम रखा और सं० १२१३
में इसका "अंचलगच्छ" यह दूसरा नाम पड़ा। ४८ जयसिंहसूरि ४६ धर्मघोषसूरि - स० १२६८ में स्वर्गवास, इन्होंने "शतपदी'
ग्रन्थ रचा। ५० महेन्द्रसूरि - इन्होंने प्राकृत में "तीर्थमाला", "शतपदी विव.
रण” और “गुरुगुणषट्त्रिंशिका'' बनाई । ५१ सिंहप्रभसूरि - इनका सं० १२८३ में जन्म, १२९१ में दोक्षा,
सं० १३०६ में खम्भात में आचार्य-पद, सं०
१३१३ में स्वर्गवास । ५२ अजितसिंहसूरि - जन्म १२८३ में, १३१६ में प्राचार्य-पद जालोर
में, सं० १३३६ में स्वर्गवास । ५३ देवेन्द्रसिंहसूरि - इनका जन्म सं० १२६६ में, दीक्षा सं० १३१६,
सं० १३२३ में प्राचार्य-पद, १३७१ में स्वर्गवास । ५४ धर्मप्रभसूरि - जन्म १३३१ में, सं० १३५१ में जालोर में
दीक्षा, १३६६ में प्राचार्य-पद, १३६३ में प्रासोटी
गांव में स्वर्गवास । ५५ सिंहतिलकसूरि - सं० १३४५ में जन्म, १३६१ में दोक्षा, १३७१
में प्राचार्य-पद, स० १३६३ में गच्छानुज्ञा और
१४६५ में स्वर्गवास । ५६ महेन्द्रप्रभसूरि - सं० १३६३ में जन्म, १३७५ में दीक्षा, १३६३
में आचार्य-पद और १३६५ में गच्छनायक,
१४४४ में स्वर्गवास शत्रुञ्जय पर । ५७ मेस्तुगसूरि - जन्म वि० सं० १४०३ में, १४१८ में दीक्षा,
१४२६ सूरिपद, १४७३ में स्वर्गवास । ५८ जयकी तिसूरि - जन्म सं० १४२३ में, १४४४ में दीक्षा, १४६७ में
सूरिपद, १४७३ में गच्छनायक १५०० में चांपानेर नगर में स्वर्गवास हुआ। उन्होंने उत्तराध्ययन
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