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________________ द्वितीय-परिच्छेद [ २४१ - का "वित्रिपक्ष" यह नाम रखा और सं० १२१३ में इसका "अंचलगच्छ" यह दूसरा नाम पड़ा। ४८ जयसिंहसूरि ४६ धर्मघोषसूरि - स० १२६८ में स्वर्गवास, इन्होंने "शतपदी' ग्रन्थ रचा। ५० महेन्द्रसूरि - इन्होंने प्राकृत में "तीर्थमाला", "शतपदी विव. रण” और “गुरुगुणषट्त्रिंशिका'' बनाई । ५१ सिंहप्रभसूरि - इनका सं० १२८३ में जन्म, १२९१ में दोक्षा, सं० १३०६ में खम्भात में आचार्य-पद, सं० १३१३ में स्वर्गवास । ५२ अजितसिंहसूरि - जन्म १२८३ में, १३१६ में प्राचार्य-पद जालोर में, सं० १३३६ में स्वर्गवास । ५३ देवेन्द्रसिंहसूरि - इनका जन्म सं० १२६६ में, दीक्षा सं० १३१६, सं० १३२३ में प्राचार्य-पद, १३७१ में स्वर्गवास । ५४ धर्मप्रभसूरि - जन्म १३३१ में, सं० १३५१ में जालोर में दीक्षा, १३६६ में प्राचार्य-पद, १३६३ में प्रासोटी गांव में स्वर्गवास । ५५ सिंहतिलकसूरि - सं० १३४५ में जन्म, १३६१ में दोक्षा, १३७१ में प्राचार्य-पद, स० १३६३ में गच्छानुज्ञा और १४६५ में स्वर्गवास । ५६ महेन्द्रप्रभसूरि - सं० १३६३ में जन्म, १३७५ में दीक्षा, १३६३ में आचार्य-पद और १३६५ में गच्छनायक, १४४४ में स्वर्गवास शत्रुञ्जय पर । ५७ मेस्तुगसूरि - जन्म वि० सं० १४०३ में, १४१८ में दीक्षा, १४२६ सूरिपद, १४७३ में स्वर्गवास । ५८ जयकी तिसूरि - जन्म सं० १४२३ में, १४४४ में दीक्षा, १४६७ में सूरिपद, १४७३ में गच्छनायक १५०० में चांपानेर नगर में स्वर्गवास हुआ। उन्होंने उत्तराध्ययन For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_05 www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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