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[ पट्टावली-पराग
४४ श्री देवगुप्तसूरि - सं० १०७२ वर्ष में । ४५ सिद्धसूरि - नवपदप्रकरण स्वोपज्ञ टीका कर्ता। ४६ कक्कसूरि ४७ देवगुप्तसूरि
सिद्धसूरि ४६ ककसूरि ५० देवगुप्तसूरि - सं० ११०८ में भीनमाल नगर में पद-उत्सव
शाह भैसाशाह ने किया । ५१ सिद्धसूरि ५२ कक्कसूरि - सं० ११५४ में हुए। जिन्होंने हेमसूरि और
कुमारपाल के वचन से अपने पास से दयाहीन
साधुओं को निकाल दिया । ५३ देवगुप्तसूरि - जिन्होंने एक लाख का त्याग किया । ५४ सिद्धसूरि ५५ ककसरि - जिन्होंने सं० १२५२ में मरोट कोट प्रकट
किया। ५६ देवगुप्तसूरि ५७ सिद्धसूरि ५८ ककसूषि ५६ देवगुप्तसूरि ६० सिद्धसूरि ६१ कक्कसरि ६२ देवगुप्त सूरि ६३ सिद्धसूरि ६४ ककसूरि ६५ देवगुप्त - देसलपुत्र सहजा, समरा ने विमलवसतिका
उद्धार कराया सं० १३७१ में । समरा के आग्रह से सिद्धसूरि ने शत्रुञ्जय के षष्ठ उद्धार में आदिनाथ की प्रतिष्ठा की ।
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