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________________ २३६ ] [ पट्टावली-पराग ४४ श्री देवगुप्तसूरि - सं० १०७२ वर्ष में । ४५ सिद्धसूरि - नवपदप्रकरण स्वोपज्ञ टीका कर्ता। ४६ कक्कसूरि ४७ देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि ४६ ककसूरि ५० देवगुप्तसूरि - सं० ११०८ में भीनमाल नगर में पद-उत्सव शाह भैसाशाह ने किया । ५१ सिद्धसूरि ५२ कक्कसूरि - सं० ११५४ में हुए। जिन्होंने हेमसूरि और कुमारपाल के वचन से अपने पास से दयाहीन साधुओं को निकाल दिया । ५३ देवगुप्तसूरि - जिन्होंने एक लाख का त्याग किया । ५४ सिद्धसूरि ५५ ककसरि - जिन्होंने सं० १२५२ में मरोट कोट प्रकट किया। ५६ देवगुप्तसूरि ५७ सिद्धसूरि ५८ ककसूषि ५६ देवगुप्तसूरि ६० सिद्धसूरि ६१ कक्कसरि ६२ देवगुप्त सूरि ६३ सिद्धसूरि ६४ ककसूरि ६५ देवगुप्त - देसलपुत्र सहजा, समरा ने विमलवसतिका उद्धार कराया सं० १३७१ में । समरा के आग्रह से सिद्धसूरि ने शत्रुञ्जय के षष्ठ उद्धार में आदिनाथ की प्रतिष्ठा की । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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