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[ पट्टावली-पराग
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"सिर वज्जसेगसूरी, कुलहेऊ चंदसूरितप्पट्ट ।
सामंतभद्दसुगुरू, वरणवास रुईविरायेण ॥६॥" 'प्रार्य सुहस्ति के पट्ट पर कोटिक और काकन्दिक सुस्थित सुप्रतिबुद्ध हुए जिनसे गण का नाम “कोटिक' प्रसिद्ध हुआ, सुस्थित सुप्रतिबुद्ध के पट्ट पर श्री इन्द्रदिन्न, इन्द्रदिन्न के पट्ट पर श्री दिन, श्री दिन के पट्ट पर श्री सिंहगिरि, सिंहगिरि के पट्ट पर वज्रस्वामी और वज्रस्वामी के पट्ट पर श्रो वज्रसेनसूरि हुए । वज्रसेन के पट्ट पर श्री चन्द्रकुल के हेतृभूत श्री चन्द्रसूरि, चन्द्रसूरि के पट्ट पर सामन्तभद्र गुरु हुए, जो वैराग्यवश वनवासरुचि होने से “वनवासी" कहलाए ।५।६।।'
"सिरिवुड्डदेवसूरी, पज्जोयरण - मारणदेव मुरिगदेवा । सिरिमारणतुंगपुज्जो, वीरगुरू जयउ जयदेवो ॥ ७ ॥
देवाणंदो विक्कम - नरसिंह - समुद्द - मागदेववरा। विबुहप्पहाभिहारणो, युगप्पहाणो जयाणंदो ॥८॥" 'श्री समन्तभद्र के पट्टधर श्री वृद्धदेवसूरि, वृद्धदेव के पट्टधर प्रद्योतनसूरि, प्रद्योतनसूरि के पट्टधर मानदेवसूरि, रूप से देव स्वरूप हुए, श्री मानदेव के पट्टधर श्री मानतुंगसूरि पूज्य हुए, मानतुंग के पट्ट पर वीरसूरि, वीरसूरि के पट्टधर जयदेव हुए, जयदेव के पट्ट पर देवानन्दसूरि, देवानन्द के पट्ट पर विक्रमसूरि, विक्रमसूरि के पट्ट पर नरसिंहमूरि, नरसिंहसूरि के पट्ट पर समुद्रसूरि, समुद्रसूरि के पट्ट पर मानदेवसूरि, मानदेवसूरि के पट्ट पर विबुधप्रभाचार्य और विबुधप्रभ के पट्ट पर युगप्रधान जयानन्दसूरि हुए ।७८॥'
"सिरिरविपहरिदो, जसदेवो देवयाहिं दीवंतो । पज्जुन्नसूरि पुरण मारण-देवसिरि विमलचंदगुरू ॥६॥ उज्जोयणो य सूरी, वडगच्छो सव्वदेवसूरि पहू ।
सिरिदेवसूरि तत्तो, पुरगोवि सिरिसबदेवमुरणी ॥१०॥" 'जयानन्दसूरि के पट्टधर श्री रविप्रभसूरि, रविप्रभ के पट्टधर यशोदेवसूरि हुए, जो सूरिमन्त्र के अधिष्ठातृ देवों से देदीप्यमान थे। यशोदेव के
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