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बधु पौषधशालिक पहावली
लघु पौषधशालिक पट्टावली के लेखानुसार प्राचार्य सूमतिसाधुसूरि ने हेमविमलसरि के अतिरिक्त श्री इन्द्र नन्दिमूरि और श्री कमलकलशसूरि को भी प्राचार्य-पद दिए थे, परन्तु उनको गच्छ नहीं सोंपा।
हेमविमलसूरि का जन्म सं० १५२० के कार्तिक सुदि पूर्णिमा को, सं० १५२८ वर्षे श्री लक्ष्मीसागरसूरिजी के हाथ से दीक्षा; सं० १५४८ में पंचलाशा गांव में श्री सुमतिसाधुसूरिजी ने प्राचार्य-पद दिया। उस समय श्री इन्द्र नन्दिसूरि ने तथा कमलकलशसूरि ने अपने दो गच्छ जुदे किये। इन्द्रनन्दी का समुदाय "कुतुबपुरा" और कमलकलशसूरि का समुदाय "कमलकलशा" नाम से प्रसिद्ध हुआ। कुतुबपुरा गच्छ में से "हर्षविनयसूरि" ने "निगममत" निकाला, जिसका दूसरा नाम "भूकटीया" मत भी था, परन्तु बाद में हर्षविनयसूरि ने "निगम-पक्ष" छोड़ दिया था।
सं० १५७० वर्ष में डाभेला गांव में स्तम्भ-तीर्थ निवासी सोनी जीवा, जागा ने पाकर धूमधाम के साथ मानन्दविमलसूरिजी को प्राचार्य पद तथा दानशेखर एवं मारिणक्यशेखर गरिण को वाचक-पद दिया, एक साध्वी को महत्तरा-पद दिया ।
सं० १५७२ में ईडर से खम्भात जाने के लिए रवाना हुए । कपडवंज में बड़ी धूमधाम से प्रवेश उत्सव हुअा। किसी चुगलखोर ने बादशाह मुदाफर के पास वृत्तान्त पहुँचाया, बादशाह ने कपडवंज में बन्दे भेजे, गुरु पहले हो वहां से चुडेल पहुँच गये थे। रात को चुडेल से चल कर सोजितरा पहुंचे, सुबह चुडेल बन्दे पहुचे, ग्रामपति को पूछा - गुरु कहां है ?
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