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[ पट्टावलो-पराग
दिया। मालूम होता है कि दिन का नरसिंह नाम लेखक के प्रमाद से छूट गया है।
इसी प्रकार सर्वदेव के पट्टधर देवसूरि के बाद द्वितीय सर्वदेवसूरि का नाम न लिख कर यशोभद्रसूरि का नाम लिखा है, यह भी लेखक का प्रमाद है।
प्रा० मणिरत्नप्रभ के याद फिर सोमप्रभ का नाम लिख कर फिर जगच्चन्द्रसूरि का नाम लिखना तथा देवसुन्दरसूरि के बाद सोमसुन्दरसरि का नाम न लिख कर मुनिसुन्दरसूरि का नाम लिखना, यह भी लेखक की प्रमाददशा का परिणाम है । यह पट्टावली किसी सागर को लिखी हुई है, क्योंकि विजयसेनसूरि के पट्ट पर श्री राजसागर, वृद्धिसागर, लक्ष्मीसागर, कल्याणसागर और पुण्यसागर को पट्ट परम्परा में माना है ।
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