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[ पट्टावली-पराग
उपर्युक्त एक-एक बात ऐसी है जो वर्तमान दिगम्बर सम्प्रदाय को अर्वाचीनता की तरफ लाती हुई विक्रम की छठो सदी तक पहुँचा देती है । ___इनके अतिरिक्त स्त्री तथा शूद्रों को मुक्ति के लिए प्रयोग्य मानना, जैनों के सिवाय दूसरों के घर जैन साधुनों को आहार लेने का निषेध, प्राहवनीयादि अग्नियों की पूजा, सन्ध्यातर्पण, प्राचमन और परिग्रह मात्र का त्याग करने का प्राग्रह करते हुए भी कमण्डलु प्रमुख शौचोपधि का स्वीकार करना आदि ऐसी बातें हैं जो दिगम्बर सम्प्रदाय के पौराणिक कालीन होने का साक्ष्य देती हैं।
श्वेताम्बर जैन मागमों में जब कि पुस्तकों को उपधि में नहीं गिना और उनके रखने में प्रायश्चित्त-विधान किया गया है, तब नाम मात्र भी परिग्रह न रखने के हिमायती दिगम्बर ग्रन्थकार साधु को पुस्तकोपधि रखने की आज्ञा देते हैं, इससे यह सिद्ध होता है कि साघुत्रों में पुस्तक रखने का प्रचार होने के बाद यह सम्प्रदाय व्यवस्थित हुप्रा है।
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