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प्रथम-परिच्छेद ]
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आरातीय मुनि श्री कुन्दकुन्द ही माने गए हैं । यह किसी ने सोचा ही नहीं कि कुन्दकुन्द के गुरु कौन थे । अपने ग्रन्थों में कुन्दकुन्द ने भी अपने गुरु का नामोल्लेख नहीं किया । इस परिस्थिति में कुन्दकुन्द के गुरु, प्रगुरु आदि का निर्णय करना असम्भव है और पिछली पट्टावली और शिलालेखों में भले हो कुन्दकुन्द के गुरु का नाम कुछ भी लिखा हो, परन्तु वह निर्विवाद माननीय नहीं हो सकता ।
नन्दी संघ की पट्टावली में जो प्राचार्य परम्परा लिखी हैं, वह भी उपर्युक्त कुन्दकुन्द के गुरु आदि के नामों के साथ सहमत नहीं होती । नन्दी संघ की पट्टावली का क्रम यह है :
उमास्वाति, लोहाचार्य, यशः कीर्ति, यशोनन्दी, देवनन्दी, गुणनन्दी इत्यादि ।
पट्टावली - लेखक के मत से लोहाचार्य के बाद होने वाले श्रद्वलि, माघनन्दी, भूतबलि, पुष्पदन्त ये आचार्य भी श्रंग-ज्ञान के जानने वाले थे, परन्तु पट्टावली - लेखक का उक्त कथन प्रामाणिक मालूम नहीं होता । इस परिस्थिति में प्राचार्य कुन्दकुन्द के गुरु कौन थे, यह प्रश्न अनिर्णीत ही रहता है ।
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