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[ पट्टावली-पराग
छोड़ी। रोहगुप्त ने उसको अपने रजोहरण से परास्त किया। सभा में रोहगुप्त की जीत पौर परिव्राजक पोट्टशाल की हार उद्घोषित हुई। परिव्राजक को पराजित करके रोहगुप्त अपने प्राचार्य के पास गया और अपनी युक्ति-प्रयुक्तियों का वर्णन किया। प्राचार्य ने कहा : सभा से उठते हुए तुझे स्पष्टीकरण करना चाहिये था कि हमारे सिद्धान्त में तीन राशियां नहीं हैं, मैंने जो यहां तीन राशियों की प्ररूपणा की है, वह वादो की बुद्धि को पराभूत करने के लिए। आचार्य ने कहा : अब भी राजसभा में जाकर खरी स्थिति का स्पष्टीकरण कर दे । पर रोहगुप्त जाने के लिए तैयार नहीं हमा। भाचार्य के बार-बार कहने पर वह बोला : अगर तीन राशियां कहीं तो इसमें कौनसा दोष लग गया, क्योंकि तीन राशियां तो हैं ही । प्राचार्य श्रीगुप्त ने कहा, प्रार्य! तू जो बात कह रहा है वह असद्भावविषयक है, इससे तीर्थङ्करों को प्राशातना होती है । फिर भी उसने प्राचार्य का वचन स्वीकार नहीं किया और उनके साथ वाद करने लगा, तब प्राचार्य राजकुल में गए मोर कहा : मेरे उस शिष्य ने आपकी सभा में जो तीन राशियों की प्ररूपणा की है वह अपसिद्धान्त है। हमारे सिद्धान्त में दो ही राशि मानी गई हैं, परन्तु इस समय हमारा वह शिष्य हमसे भी विरुद्ध हो गया है। अतः आप हमारे बीच होने वाले वाद को सुनें। राजा ने स्वीकार किया और उन दोनों गुरु-शिष्यों का वाद राजसभा में प्रारम्भ हुआ। एक-एक दिन करते छः मास निकल गए। राजा ने कहा : मेरे राज्यकार्य बिगड़ते हैं, प्राचार्य ने कहा : इतने दिन मैंने अपनी इच्छा से विलम्ब किया, अब आप देखिए ! कल हो इसको निगृहीत कर दूंगा। दूसरे दिन प्राचार्य ने राजा से कहा : कुत्रिकापण में संसार भर के सब द्रव्य रहते हैं, आप वहां से जीव, अजीव और नोजीव, इन तीनों द्रव्यों को मंगवाइये । राजपुरुष कुत्रिकापण को भेजे गए और उन्होंने उक्त तीनों पदार्थों को वहां मांगा। कुत्रिकापण की अधिष्ठायिका देवता ने "जीव" मांगने पर :'सजीव पदार्थ" दिया, "मजीव" के मांगने पर "निर्जीव पदार्थ" दिया, पर नोजोव के मांगने पर कुछ नहीं दिया। इस ऊपर से "राजसभा में रोहगुप्त का सिद्धान्त अपसिद्धान्त माना गया।"
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