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[ पट्टावली-पराग
६० वर्ष के बाद सम्भूतविजय का स्वर्गवास हुमा। सम्भूतविजय से १४ वर्ष के बाद भद्रबाहु और उनमें ४५ वर्ष के बाद स्थूलभद्र स्वर्ग प्राप्त हुए, इस प्रकार स्थूलभद्र के स्वर्गवास तक २६७ वर्ष महावीर-निर्वाण को हुए।
स्थूलभद्र से प्रार्य महागिरि ३० और महागिरि से आर्य सुहस्ती ४६ वर्ष तक युगप्रधान रहे और मार्य सुहस्ती के बाद ४१ वर्ष तक निगोद व्याख्याता श्यामार्य का युगप्रधानत्व रहा । श्यामार्य के स्वर्गवासानन्तर रेवतिमित्र ३६ वर्ष, रेवतिमित्र के बाद ६ वर्ष प्रार्य समुद्र और प्रार्य समुद्र से २० वर्ष तक प्रार्य मंगू युगप्रधान रहे, आर्य मंगू के बाद ४४ आर्यधर्म के, ३६ वर्ष भद्रगुप्त के, भद्रगुप्त के बाद १५ वर्ष श्री गुप्त के, श्री गुप्त के अनन्तर ३६ वर्ष आर्यवज्र के, १३ वर्ष श्री आर्यरक्षित के, २० वर्ष पुष्यमित्र के, ३ वर्ष श्री वज्रसेन के, ६९ नागहस्ती के, ५६ रेवतिमित्र के; ७८ सिंहसूरि के और ७८ वर्ष नागार्जुन वाचक के।
"रेवइमित्से गुरगसट्टि, सिंहसूरिम्मि अट्ठहत्तरी य । नागज्जुणि अडहत्तरि, भूयदिन्ने य इगुणयासी ॥७॥ एगारस कालगज्जे, सिद्धतुद्धारुकारि बलहीए । एवं नवसय तिरणउइ, वासा वालग्भ संघस्स ॥८॥"
और ७६ भूतदिन्न प्राचार्य के मिलकर वीरनिर्वाण से ६२ वर्ष हुए, इनमें वलभी में सिद्धान्त का उद्धार करने वाले प्राचार्य कालक के ११ वर्ष मिलाने पर वालभ्य संघ की मान्यतानुसार ६६३ वर्ष होते हैं, परन्तु माथुरी गणना में ९८० वर्ष पाते हैं। वलभी में किये गये पुस्तक लेखन के समय दो गणनाओं में जो १३ वर्ष का अन्तर पड़ा, उसका कारण यह है कि माधुरी वाचनानुयायी संघ ने अपनी गणना में श्रीगुप्त स्थविर को स्थान नहीं दिया और मार्य मंगू के युगप्रधानत्व पर्याय के ४१ वर्ष माने हैं जिससे गणना का अंक ९८० का होता है। दूसरी तरफ वलभीवाचनानुयायियों ने प्रार्य मंगू का युगप्रधानत्व पर्याय ३६ वर्ष का माना मोर श्रीगुप्त को अपनी गणना में स्थान देकर उनके १५ वर्ष माने, फलस्वरूप दोनों वाचनानुयायियों में १३ वर्ष का अन्तर अमिट हो गया।
नानुयायियों में स्थान देकारत्व पर्याय अलरी तरफ वल
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