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उत्तर - शुद्ध वस्त्र पहनकर कटासन, मुहपत्ती, चरवला, नवकारवाली एवं कोई भी धार्मिक पुस्तक लेकर गुरुके समक्ष जाना पड़ता है और वहाँ विधिपूर्वक सामायिककी प्रतिज्ञा ग्रहण करनी पड़ती है ।
प्रश्न – सामायिककी प्रतिज्ञा किस प्रकार ली जाती है ?
उत्तर - उसमें प्रथम गुरुको उद्देश करके कहना पड़ता है कि ' करेमि भंते ! सामाइयं' अर्थात् 'हे पूज्य ! मैं सामायिक करता हूँ,' तदनन्तर कहना पड़ता है कि ' सावज्जं जोगं पच्चक्खामि ' अर्थात् मैं पापमयी प्रवृत्तिका प्रतिज्ञापूर्वक परित्याग करता हूँ ' ।
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प्रश्न - पापमयी - प्रवृत्ति कितने समय के लिये छोड़ी जाती है ?
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- इसका स्पष्टीकरण करनेके लिये ' जाव नियमं पज्जुवासामि' ऐसा पाठ बोला जाता है । जिसका अर्थ यह है कि जहाँतक मैं इस नियम का सेवन करूँ, वहाँतक पापवाली प्रवृत्ति नहीं करूँगा । एक सामायिकका नियम दो घड़ी अर्थात् ४८ मिनिट तकका होता है, अतः पापवाली प्रवृत्ति ४८ मिनिटतक छोड़ दी जाती है ।
उत्तर
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प्रश्न -- सामायिक में पापवाली प्रवृत्ति कितने प्रकारसे छोड़ी जाती है ? उत्तर - सामायिक में पापवाली प्रवृत्ति छः - कोटियोंसे अर्थात् छः प्रकारसे छोड़ी जाती है ।
( १ ) पापवाली प्रवृत्ति मैं मनसे करूँ नहीं ।
( २ ) पापवाली प्रवृत्ति मैं मनसे कराऊँ नहीं । (३) पापवाली प्रवृत्ति मैं वचनसे करूँ नहीं । ( ४ ) पापवाली प्रवृत्ति मैं वचनसे कराऊँ नहीं । (५) पापवाली प्रवृत्ति मैं कायासे करूँ नहीं । (६) पापवाली प्रवृत्ति मैं कायासे कराऊँ नहीं ।
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