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________________ ३६ उत्तर - शुद्ध वस्त्र पहनकर कटासन, मुहपत्ती, चरवला, नवकारवाली एवं कोई भी धार्मिक पुस्तक लेकर गुरुके समक्ष जाना पड़ता है और वहाँ विधिपूर्वक सामायिककी प्रतिज्ञा ग्रहण करनी पड़ती है । प्रश्न – सामायिककी प्रतिज्ञा किस प्रकार ली जाती है ? उत्तर - उसमें प्रथम गुरुको उद्देश करके कहना पड़ता है कि ' करेमि भंते ! सामाइयं' अर्थात् 'हे पूज्य ! मैं सामायिक करता हूँ,' तदनन्तर कहना पड़ता है कि ' सावज्जं जोगं पच्चक्खामि ' अर्थात् मैं पापमयी प्रवृत्तिका प्रतिज्ञापूर्वक परित्याग करता हूँ ' । 6 प्रश्न - पापमयी - प्रवृत्ति कितने समय के लिये छोड़ी जाती है ? - - इसका स्पष्टीकरण करनेके लिये ' जाव नियमं पज्जुवासामि' ऐसा पाठ बोला जाता है । जिसका अर्थ यह है कि जहाँतक मैं इस नियम का सेवन करूँ, वहाँतक पापवाली प्रवृत्ति नहीं करूँगा । एक सामायिकका नियम दो घड़ी अर्थात् ४८ मिनिट तकका होता है, अतः पापवाली प्रवृत्ति ४८ मिनिटतक छोड़ दी जाती है । उत्तर - प्रश्न -- सामायिक में पापवाली प्रवृत्ति कितने प्रकारसे छोड़ी जाती है ? उत्तर - सामायिक में पापवाली प्रवृत्ति छः - कोटियोंसे अर्थात् छः प्रकारसे छोड़ी जाती है । ( १ ) पापवाली प्रवृत्ति मैं मनसे करूँ नहीं । ( २ ) पापवाली प्रवृत्ति मैं मनसे कराऊँ नहीं । (३) पापवाली प्रवृत्ति मैं वचनसे करूँ नहीं । ( ४ ) पापवाली प्रवृत्ति मैं वचनसे कराऊँ नहीं । (५) पापवाली प्रवृत्ति मैं कायासे करूँ नहीं । (६) पापवाली प्रवृत्ति मैं कायासे कराऊँ नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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