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________________ प्रश्न-पापवाली प्रवृत्ति कुल कितनी कोटियोंसे छोड़ी जा सकती है ? उत्तर-नौ कोटियोंसे । प्रश्न-उनमें कौन तीन कोटियाँ उक्त प्रतिज्ञाओंमें नहीं आती ? उत्तर-(१) कोई पापवाली प्रवृत्ति करता हो तो उसका मनसे अनुमोदन न करूँ। (२) कोई पापवाली प्रवृत्ति करता हो तो उसका वचनसे अनु मोदन न करूं। (३) कोई पापवाली प्रवृत्ति करता हो तो उसका कायासे अनु मोदन न करूं। जो गृहस्थदशामें हैं, वे इन तीन कोटियोंसे-प्रतिज्ञा नहीं कर सकते। प्रश्न-इसके पश्चात् क्या किया जाता है ? उत्तर-इसके पश्चात् ' तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ' यह पाठ बोलकर अभीतक जो पापवाली प्रवृत्तियाँ की __ हों, उनका प्रतिक्रमण किया जाता है । पुनः पापवाली प्रवृत्ति करनेका मन न हो इसके लिये ऐसा प्रतिक्रमण आवश्यक है । प्रश्न-साधु किस तरह सामायिक करता है ? उत्तर-साधु दीक्षा लेते समय जीवनभर सामायिक करनेकी प्रतिज्ञा लेता है, अतः वह हर समय सामायिकमें हो होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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