Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराख
पद्म प्रवृत्ते हैं. वे महाधीर परम समाधि से शरीर छोड़कर स्वर्ग में बड़ देव होकर अद्भुत सुख भोगे हैं, वहांसे
चयकर उत्तम मनुष्य होकर मोक्ष पावें हैं, कई एक मुनि तपकर अनुत्तर विमान में अहिमन्द्र होयहें वहां से चयकर तीर्थकर पद पावे हैं, कई एक चक्रवर्त्त बलदेव कामदेव पदपावे हैं, कई एक मुनि महातप कर निदान बांध स्वर्ग में जाय वहां से चयकर वासुदेव होय हैं वे भोगको नाही तज सके हैं इसप्रकार श्रीवर्द्धमान स्वामी के मुख से धर्मोपदेश श्रवण कर देव मनुष्य तिर्यच अनेक जीव ज्ञानको प्राप्त भए कई एक उत्तम पुरुष मुनि भए कईएक श्रावक भए कईएक तिर्यचभी श्रावक भए देवव्रत नहीं धोरणकर सक्ते हैं इसलिये अवृत सम्यक्त कोही प्राप्त भए, अपनी अपनी शक्ति अनुसार अनेक जीव धर्ममें प्रवर्ते पाप कर्म के उपार्जन से विरक्त भए, धर्म श्रवणकर भगवान को नमस्कार कर अपने अपने स्थानगए श्रेणिक महाराज भी जिन बचन श्रवणकर हर्षित होय अपने नगरको गए। सन्ध्या समय सूर्य अस्त होनेको सन्मुख भया अस्ताचल के निकट आया अत्यन्त आरक्तता (सुरखी) को प्राप्त भया किरण मंद भई सो यह बात उचितही है जब सूर्य का अस्त होय तब किरण मन्द हौयही होंय जैसे अपने स्वामी को आपदा परे तब किसके तेजकी बृद्धि रहै । चकवीनके अश्रूपात सहित जे नेत्र तिनको देख मानो दयाकर सूर्य अस्तभया, भगवान के समवशरण विषे तो सदा प्रकाशही रहे है. रात्रि दिनका विचार नहीं और सर्वत्र पृथिवी विषे रात्रि पड़ी सन्ध्या समय दिशालाल भई सो मानो धर्म श्रवणकर प्राणियों के चित्तसे नष्टभया जो राग सो सन्ध्या के छल कर दशों दिशान में प्रवेश करता भया (भावार्थ) राग का स्वरूप भी लाल होय है और दिशा विषे भी ललाई भई और सूर्य के अस्त होनेसे लोगोंके
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