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राजनैतिक और सैनिक महत्व
उन्होंने तब अपने पुत्रों को खुला कर कहा कि करमचन्द तो मर गया, अब तो तुम उसके बेटों को मारना । मुझे मारने के षड्यन्त्र में जो २ लोग शरीक थे उनसे बदला लेना। क्योंकि वे दलपत को राज्य दिलाना चाहते थे। इस पर सुरसिंहजी ने अर्ज की कि यदि मैं राजा हुआ तो उन लोगों को अवश्य दण्ड दूंगा। महाराज रायसिंहजी की इस मनोवृत्ति की सूक्ष्म परीक्षा कर परम नीतिज्ञ मेहता करमचंदजी ने पहले हो जो अपने पुत्रों को भविष्यवाणी कही थी वह सच उतरी और उसकी सच्चाई महाराजा रायसिंहजी की मृत्यु समय की उन बातों से स्पष्टतः प्रगट होती है, जो उन्होंने अपने वारिश सूरसिंहजी को मेहताजी के बेटे पोतों से बदला लेने के लिये कही थी।
यह तो हुई सिर्फ मनोवृत्ति के सूक्ष्म अध्ययन की बात । अब मेहता करमचंदजी का भविष्य कथन किस प्रकार सोलह आना सच्चा निकला इसका वृतान्त भी सुन लीजिये ।
रायसिंहजी के संवत १६६८ में स्वर्गवासी हो जाने पर बादशाह जहाँगीर ने दलपत को बीका. नेर का स्वामी बनाया । परन्तु जब वह इससे अप्रसन्न हो गया तो फिर संवत् १६७० में सूरसिंहजी को बीकानेर का राजा बनाया। जब सूरसिंहजी बादशाह से रुखसत लेकर देहली से बीकानेर के लिये रवाना होने को तब आपने मेहता करमचन्दजी के दोनों पुत्र भाग्यचन्द और लखमीचन्द्र को अपने पास बुलवा कर बहुत तसल्ली दी और उन्हें अपने साथ चलने के लिये बहुत समझाया बुझाया । ये दोनों बच्छावत बंधु सपरिवार बीकानेर जाने के लिये राजी हो गये। जब ये बीकानेर पहुँच गये तब राजा सूरसिंहजी ने इन दोनों की भंत्री पद पर नियुक्त किया। छः मास तक उन पर ऐसी कृपा दिखलाई कि वे सब पुरानी बातें भूल गये, यहां तक कि एक दफे खुद महाराजा साहव इनकी हवेली पर गये जहाँ पर उक्त दोनों बन्धुओं ने एक लाख रुपये का चबूतरा बनवा कर उस पर महाराजा साहव की पधरावनी की। जब इन अपरी शिष्टाचारों में मेहता करमचन्दजी के दोनों बेटे मोहांध हो गये तब महाराणा ने एक दिन कुछ हजार राजपूतों को उन्हें मारने के लिये भेजा। वे भी वहादुर थे। उन्होंने पहले उस समय की क्रूर प्रथा के अनुसार अपनी माता, स्त्रियों एवं बच्चों को मार कर राज्य की फौनों का मुकाबिला करने का निश्चय किया। वे अपने ५००वीरों सहित लड़ कर वीरगति को प्राप्त हए। ..
जब हम इस घटना की संगति करमचन्दजी की उहरोक्त भविष्यवाणी से लगाते हैं तब हमें उस के मानव-प्रकृति के अगाध अध्ययन पर सचमुच बड़ा विस्मय होता है। कहने का मतलब यह है कि करमचंद के सारे के सारे कुटुम्बीगण म र डाले गये। सिर्फ उनके कुटुम्ब की एक गर्भवती स्त्री ने अपने विश्वसनीय सेवक रघुनाथ की सहायता से करणी माता के मन्दिर में शरण लेकर अपनी जान बचाई । इस स्त्री के गर्भ