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श्रीसलवाल
1 लगभग १० साल पूर्व आपने अपने पिताजी की यादगार में 'फूलचन्द जैन कन्या पाठशाला' का स्थापन किया है।
आपको ता० २० अप्रैल सन् १९३३ के दिन जोधपुर बार एसोशिएसन ने मान पत्र भेंट किया । इसमें जोधपुर के लगभग ४०० प्रतिष्ठित सज्जन उपस्थित थे । इसी समय ओधपुर दरबार की ओर से आपको पैरों में सोना इनायत किया गया, इस समय भाप जोधपुर की ओसवाल समाज में, राज्य में, सरदारों में और शिक्षित सज्जनों में नामांकित पुरुष हैं। जनवरी १९३३ से आप स्टेट सर्विस से रिटायर्ड हैं तथा शान्तिमय जीवन बिताते हैं । आपके पुत्र धनपतसिंहजी पढ़ते हैं ।
ग्रोसतकाल
शाह गणेशमलजी सराफ ओसतवाल, जोधपुर
- यह खानदान अपने मूल निवासस्थान नागोर में चौधरी कहलाता था । वहाँ से नगराजजी के पिता संवत् १६०० के लगभग जोधपुर आये। नगराजजी के पश्चात् क्रमशः बनेचंदजी और मनजी हुए। जो मोहल्ला अब सराफों की पोल कहलाता है, वह पुराने पट्टों में मनजी की ग्वाल के नाम से लिखा हुआ पाया जाता है। सराफ मनजी के भानीदासजी तथा कनीदासजी के किशनदासजी और विशनदासजी नामक पुत्र हुए । सराफ विसनदासजी के नथमलजी, हिम्मतमलजी, उम्मेदमलनी, तथा अगर चन्दजी नामक चार पुत्र हुए। संवत् १९०० के लगभग उम्मेदमलजी तथा अगरचन्दजी का बैकिग व्यापार जोरों पर था। सराफ अगरचन्दजी के आलमचन्दजी, मोतीलालजी तथा चन्दनमलजी नामक १ पुत्र हुए।
चन्दनमलजी सरराफ— आपका जन्म संवत् १८८० में हुआ। आपका महासज कुमार यशवंतसिंहजी से अच्छा मेल था। कहा जाता है। एक बार सरालजी, "राजकुमार से कुश्ती में दांव जीत गये । इससे अप्रसन्न हो राजकुमार ने आलमचंदजी के तमाम वही खाते जप्त करवा लिये। इससे संवत १९२५ में चंदनमलनी रतलाम चले गये। वहाँ के आफिसर मोर शहमत अली ने इन्हें अफीम के सेल्स रजिस्टर का ओहदेदार बनाया। इसके बाद आप क्रमशः गणेशदास किशनाजी की महदपुर और आगरा - -दुकानों के सुन्नीम, तथा गोकुलदासजी की दुकानों के सुपरवायजर रहे । रेसिडेंसी खजाने पर सर्विस करते रहे तथा संवत् १९५७ में स्वर्गवासी हुए। सराफ हुए ।
वहाँ से जोधपुर आकर आपके पुत्र सुजानमलजी
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