________________
सावण सुखा
स्थान बीकानेर से संवत् १९६०-६५ के लगभग व्यवसाय के किये दमोह आये । तथा यहाँ इन्होंने कुछ मौज़े सरकार से खरीदकर मालगुजारी और साहुकारी व्यापार चालू किया। मरोठी उदयचन्द का स्वर्गवास संवत् १८४१ में हुआ । आपके पुत्र सुखकाळजी भी जमींदारी का संचालन करते रहे। इनके वंशीधरजी, तखतमलजी और बिरदीचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए। आप तीनों बंधु अपनी फर्म का संचालन करते रहे । वंशीधरजी के कोई संतान नहीं हुई। शेष २ बंधुओं का परिवार विद्यमान है ।
तखतमजी मरोठी का परिवार - सेठ तखकमलजी १५ वर्ष की आयु में संवत् १९६३ में स्वर्गवासी हुए। आपके डालचन्दजी, रतनचंदजी, मूलचन्दजी, हीरचन्दजी तथा कस्तूरचन्दजी नामक ५ पुत्र हुए 1 इनमें ढालचन्दमी संवत् १९७५ में, रतनचन्दजी संवत् १९६० में और हीरचंद का संवत् १९७१ में स्वर्गवासी हुए - इस समय इस परिवार में सेठ कस्तूरमलनी मरोठी, डालचन्दजी के पुत्र लक्षमीचन्दजी मरोठी तथा हीरचंदजी के पुत्र पूनमचंदजी मोठी हैं।
मरोठी पूनमचन्दजी- आपका जन्म संवत् १९६१ में हुआ । आप मिलनसार, शिक्षित तथा समझदार युवक हैं। आप स्थानीय म्बु० के मेम्बर रह चुके हैं। तथा इस समय डिस्ट्रक्ट कौसिल के मेम्बर हैं। आपके पुत्र पीतमचन्दजी तथा पदमचन्दजी पढते हैं। मरोठी लखमीचन्दजी के पुत्र हरखचंदजी मेट्रिक में पढ़ते हैं । इस परिवार में प्रधानतया जमीदारी का काम होता है ।
बिरदीचन्दजी मरोठी का परिवार आपका जन्म संवत् १९०५ में हुआ था। आप दमोह प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । आप यहाँ के ऑनरेरी मजिस्ट्रेट थे । तथा दरबारी सम्मान भी आपको प्राप्त था । यहाँ की कई सार्वजनिक संस्थाओं के आप मेम्बर थे । आपके हजारीमलजी सूरजमलजी तथा नेमीचंदजी नामक ३ पुत्र हुए। जिनमें हजारीमलजी का स्वर्गवास हो गया ।
सूरजमलजी मरोठी - आपका जन्म संवत् १९४४ में हुआ । आप अपने पिताजी के बाद तमाम प्रतिष्ठित पदों और सार्वजनिक कामों में सहयोग देते हैं । इस समय आप दमोह के सेकंड क्लास ऑनरेरी मजिस्ट्रेट तथा कई संस्थाओं के मेम्बर हैं । सरकार में आपका अच्छा सम्मान है। आपके पुत्र खुशालचन्दजी १० साल के तथा गोकुलचन्दजी १५ साल के हैं। भाषके यहाँ जमीदारी का काम होता है । सेठ सूरजमलजी के छोटे भ्राता नेमीचंदजी का जन्म संवत् १९४८ में हुआ। आपके पुत्र तिछोकचन्दजी बालक हैं ।
सावगा सुखा
सावण सुखा गौत्र की उत्पत्ति—कहा जाता हैं कि चंदेरी के राजा खरहत्थसिंह राठोड़ ने अपने
चार पुत्रों सहित दादा जिनदत्तसूरिजी से संवत् ११९२ में जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की।
इनके तीसरे पुत्र भैंसाशाह नामी व्यक्ति हुए। भैंसाशाह के ५ पुत्रों में से चौथे पुत्र कुँवरजी थे। इनको ज्योतिष का ज्ञान था। एक बार चित्तौड़ के राणोजी ने इनको पूछा कि कहो "कुँवरजी सावण भादवा कैसा होगा" । इन्होंने गिनती करके बतलाया कि "सावण सूखा और भादवा हरा होगा" जब यह बात सत्य निकली । तब .से कुंवरजी की संतानें "सावण सुखा” के नाम से प्रसिद्ध हुई। और इस प्रकार यह गौत्र उत्पन्न हुई ।
६३५