Book Title: Oswal Jati Ka Itihas
Author(s): Oswal History Publishing House
Publisher: Oswal History Publishing House

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Page 1359
________________ बच्छावत मेहता पुत्र हुए। इनमें से प्रथम दो भाइयों ने संवत् १८०० के करीब मिर्जापुर आ कर अपनी व्यापार कुशलता ओर होशियारी से रुई तथा गल्ले के व्यवसाय में अच्छी सफलता प्राप्त की । आप लोगों का स्वर्गवास हो गया है । सेठ कल्लूमलजी के नथमलजी नामक एक पुत्र हुए जिनका युवावस्था में ही देहावसान हो गया । आपके नाम पर अजमेर से सेठ लाभचन्दजी गेलड़ा दत्तक लिये गये । सेठ लाभचन्दजी - आप इस परिवार में बड़े नामांकित व्यक्ति हो गये हैं। आप बड़े बुद्धिमान व्यापार चतुर तथा प्रतिष्ठित पुरुष थे । आपने करीब ८० वर्ष पूर्व कलकशे में जवाहरात का व्यापार किया तथा सेठ मोतीचन्दजी नखत के साझे में करीब ३५ वर्षो तक "लाभचन्द मोतीचंद" के नाम से जवाहरात का सफलता पूर्वक व्यवसाय किया। यह फर्म बड़ी प्रतिष्ठित और कोर्ट जुएलर रही तथा वाइसराय आदि कई उच्च पदाधिकारियों से अपाइन्टमेंट भी मिले थे । सन् १९१६ में उक्त फर्म के दोनों पार्टनर अलग २ हो गये । तभी से सेठ लाभचन्दजी के पुत्र लाभाचन्द सेठ के नाम से स्वतंत्र जवाहरात का व्यापार कर रहे हैं। इस फर्म के वर्तमान संचालक लाभचन्दजी के पुत्र सौभागचंदजी, श्रीचन्दजी, अभयचन्दजी, लखमीचन्दजी, हरकचन्दजी, विनयचन्दजी एवं कीरतचन्दजी हैं। इनमें प्रथम चार व्यवसाय का संचालन करते हैं । आप लोग मिलनसार तथा शिक्षित सज्जन हैं। शेष तीन भाई पढ़ते हैं । आप लोगों का आफीस इस समय ७ ए. लिन्डसे स्ट्रीट में है जहाँ पर जवाहरात का व्यवसाय होता है । आप लोगों की कलकरो में. बहुत सी स्थायी सम्पत्ति भी है। आपके पिताजी द्वारा स्थापित किया हुआ । श्री 'लाभचन्द मोतीचन्द जैन फ्री प्रायमरी स्कूल कलकत्ते में सुचारुरूप से चल रहा है। इसके लिये लाभचन्द मोतीचन्द नामक फर्म से ८००००) का एक ट्रस्ट भी कायम किया गया था । बच्छावत मेहता माणकचन्द मिलापचन्द का खानदान, जयपुर इस खानदान के पूर्वज मेहता भेरोंदासजी सं० १८२६ में जोधपुर से जयपुर आये। इनके सवाईरामजी, सालिगरामजी तथा शेरकरणजी नामक तीन पुत्र हुए। इनको "मौजे मानपुर टीला" (चारसू तहसील) नामक गांव जागीर में मिला जो इस समय तक सवाईरामजी की संतानों के पास मौजूद है। सवाईरामजी के पुत्र उदयचन्दजी तथा साहिबचन्दजी हुए। उदयचन्दजी के विजयचन्दजी, माणकचन्दजी तथा मिलापचन्दजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें माणिकचन्दजी, साहिबचन्दजी के नाम पर दत्तक गये। मेहता उदयचन्दजी राज का काम तथा साहिबचन्दजी गीजगढ़ ठिकाने के कामदार और महारानी तंवरजी व चम्पावतजी के कामदार रहे। इसी प्रकार माणकचंदजी और मिलापचंदजी शिवगढ़ ठिकाने के कामदार रहे । मेहता मिलापचंदजी के पुत्र रामचन्द्रजी तथा माणकचंदजी के लक्ष्मीचंदजी, अखेचंदजी, नेमीचंदजी, गोपीचंदजी तथा भागचंदजी नामक पांच पुत्र हुए। इनमें अखेचन्दजी विजयचन्दजी के नाम पर तथा गोपीचन्दजी अन्यत्र दत्तक गये । मेहता लक्ष्मीचन्दजी तथा भखेचंदजी ने गीजगढ़ ठिकाने का काम किया। इन दोनों का संवत् १९७८ में स्वर्गवास हुआ । वर्तमान में इस कुटुम्ब में मेहता नेमीचंदजी, अखेचंदजी के पुत्र मंगलचंदजी बी० ए०, मिलापचन्दजी के पुत्र रामचन्द्रजी तथा लक्ष्मीचन्दजी के पुत्र जोगीचंदजी, केवलचन्दजी, उमरावचन्दजी, उगमचंद जी और कामचन्दजी विद्यमान हैं। मेहता मंगलचन्दजी जयपुर में २७/२८ सालों तक सर्वे सुपरिन्टेन्डेन्ट १२४ ६६५

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