Book Title: Oswal Jati Ka Itihas
Author(s): Oswal History Publishing House
Publisher: Oswal History Publishing House

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Page 1379
________________ कचर-महा सम्मान पाया । इस समय इन चारों भाइयों की संतानों के लगभग १२५ घर बीकानेर में निवास कर रहे हैं। यहाँ का कोचर परिवार अधिकतर बीकानेर स्टेट की सेवा ही करता चला आ रहा है राज्य कार्य्यं करने से यह परिवार " मेहता” के नाम से सम्मानित हुआ, आज भी इस परिवार के अनेकों व्यक्ति स्टेट सर्विस में हैं । बीकानेर का कोचर परिवार अधिकतर श्री जैन श्वे. मंदिर मार्गीय आम्नाय का माननेवाला है । मेहता रामसिंहजी कोचर का परिवार कोचर रामसिंहजी, उरझाजी के पाटवी पुत्र थे, बीकानेर दरबार महाराजा सूरसिंहजी ने इन्हें चाँदी की कलम एवं दवात बख्श कर लिखने का काम दिया, जिससे इनका परिवार " लेखणिया" कहलाने लगा । इस परिवार को स्टेट ने "वीमलू" नामक गाँव जागीर में दिया, जो आज भी इस परिवार के पाटवी मेहता मंगलचन्दजी के अधिकार में है। मेहता रामसिंहजी के पश्चात् क्रमशः जीवराजजी, भगौतीरामजी और माणकचन्दजी हुए। मेहता माणकचन्दजी के पुत्र दुलीचन्दजी तथा बख्तावरचन्दजी थे। इनमें मेहता दुलीचन्दजी के परिवार में राय बहादुर मेहता मेहरचन्दजी एवं बख्तावरचन्दजी के परिवार मेंस्वर्गीय मेहता बहादुरमलजी नामी व्यक्ति हुए । राय बहादुर मेहता मेहरचन्दजी का परिवार — ऊपर हम मेहता दुलीचन्दजी का नाम लिख आये हैं। आपके पुत्र चौथमलजी एवं पौत्र सुल्तानचन्दजी हुए। मेहता सुल्तानचन्दजी के सूरजमलजी, बींजराजजी, चुन्नीलालजी एवं हिम्मतमलजी नामक ४ पुत्र हुए, इनमें मेहता चुन्नीलालजी २२ सालों तक हनुमानगढ़ में तहसीलदार रहे। आपके कार्यों से प्रसन्न होकर दरबार ने आपको सूरतगढ़ में नाजिम का सम्मान दिया । आपके लखमीचन्दजी एवं मोतीचन्दजी नामक २ पुत्र हुए, इनमें मेहता मोतीचन्दजी, हिम्मतमलजी के नाम पर दत्तक गये । मेहता लखमीचन्दजी बहुत समय तक बीकानेर एवं रिणी में नाजिम के पद पर कार्य करते रहे । पश्चात् आप स्टेट की ओर से आबू, हिंसार एवं जयपुर के वकील रहे। इसी प्रकार मेहता मोतीचन्दजी भी कई स्थानों पर तहसीलदारी एवं नाजिमी के पद पर कार्य्य करते रहे । आपके मेहरचन्दजी मिलापचन्दजी, गुणचन्दजी तथा केसरीचन्दजी नामक ४ पुत्र हुए, इन में मेहरचन्दजी, मेहता लखमीचन्दजी के नाम पर दत्तक गये। मेहता मेहरचन्दजी का जन्म सम्वत् १९३२ में हुआ । आप इस परिवार में विशेष प्रतिभावान पुरुष हुए। सम्वत् १९५४ में आप रियासत में तहसीलदारी के पद पर मुकर्रर हुए। एवं सन् १९१२ में स्टेट ने आपको सूरतगढ़ का नाजिम मुकर्रर किया। आपकी कारगुजारी एवं होशियारी से दिनों दिन जिम्मेदारी के कार्यों का भार आप पर आता गया । सन् १६१३ में बीकानेर स्टेट ने जोधपुर, जयपुर एवं बीकानेर के सरहद्दी तनाजों को दूर करने के लिये आपको अपना प्रतिनिधि बनाकर सुजानगढ़ भेजा । सन् १९१६ में महाराजा श्री गंगासिंहजी बहादुर ने आपको "शाह" का सम्मान इनायत किया । इसी तरह से वार आदि कार्यों में स्टेट की ओर से इमदाद में सहयोग लेने के उपलक्ष में आपको ब्रिटिश गवर्नमेंट ने सन् १९१८ में " रायबहादुर” का खिताब एवं मेडिल इनायत किया । इसी साल बीकानेर दरबार ने भी आपको "रेवेन्यू कमिश्नर" का पद बख्श कर सम्मानित किया । इस प्रकार प्रतिष्ठापूर्ण जीवन बिता कर आप १९ दिसम्बर सन् १९१९ को स्वर्गवासी हुए। आप बड़े लोकप्रिय महानुभाव थे । आपके अंतिम संस्कारों के लिये दरबार ने आर्थिक सहायता पहुँचाई थीं। इतना ६७९

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