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सिंहावलोकन
प्रकार सैनिक क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से काया पलट कर दिया। वे स्वयं चाहे राजा न बने हों, मगर इसमें कोई सन्देह नहीं कि उन्होंने कई राजाओं को बना दिया । इसी प्रकार व्यापारिक लाइन में भी उन्होंने अपना अद्भुत पराक्रम प्रकट किया । सच बात तो यह है, कि वे जिधर झुक गये विजय भी उधर ही हो गई ।
जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर आदि रियासतों का इतिहास देखने से पता लगता है कि सोलहवीं शताब्दि से लेकर बीसवीं सदी के आरम्भ तक इन रियासतों के शाशन संचालन में ओसवालों का प्रधान हाथ रहा है। जोधपुर स्टेट के अन्तर्गत साढ़े चारसो वर्षों में लगभग १०० दीवान ओसवाल हुए, इसी प्रकार वहाँ की मिलीटरी लाइन में भी उनका काफी प्रभुत्व था । इसी प्रकार मेवाद और बीकानेर में भी हमें पचीसों प्रधान, दीवान और फौजबक्षी ( कमाण्डर इन चीफ) भोसवाल दिखलाई देते हैं। इसके साथ ही यह बात भी खास तौर से ध्यान में रखने की है कि वह समय आज की तरह शान्ति और सुव्यवस्था का न था, उस समय भारत के राजनैतिक वातवरण में अशान्ति के भयङ्कर काले बादल मण्डरा रहे थे। मिनिट मिनिट में साम्राज्यनीति और राजनीति में परिवर्तन होते थे । जिसकी वजह से शासकों का अस्तित्व खतरे में था, दीवान और मुसाहबों की तो बात ही क्या, मगर कठिनता की उस काल रात्रि में भी ओसवाल राजनीतिज्ञों ने अपने अस्तित्व को नष्ट न होने दिया। यही नहीं कठिनाइयों की भयङ्कर कसौटी पर कस जाने की वजह से उनका अस्तित्व और भी अधिक प्रकाशित हो उठा, और उन्होंने अपने अस्तित्व के साथ २ अपने मालिकों के अस्तित्व की भी रक्षा की। मुहणोत नैणसी, भण्डारी खींवसी, भण्डारी रघुनाथ, भण्डारी गंगाराम, सिंघवी जेठमल, सिंघवी इन्दराज, सिंघवी धनराज, सिंघवी फतेराज, बच्छावत कर्मचंद, मेहता हिन्दूम, मेहता जालसी, कावड़िया भामाशाह, सिंघवी दयालदास, मेहता अगरचंद, मेहता गोकुलचंद, मेहता शेरसिंह, जोरावरमक बापना इत्यादि अनेकों प्रतापी ओसवाल मुस्तुद्दियों की गौरव गाथाओं से आज राजस्थान का इतिहास प्रकाशित हो रहा है। रियासतों की ओर इन से लोगों को प्राप्त हुए रुक्कों, परवानों से पता लगता है कि उनकी सेवाओं का उस समय कितना बड़ा मूल्य रहा था ।
राजनैतिक क्षेत्र ही की तरह ये लोग धार्मिक क्षेत्र में भी कभी किसी से पीछे नहीं रहे। इस जाति के धार्मिक इतिहास में भी हमें समराशाह, करमाशाह, वर्द्धमानशाह, थीहरूशाह, भैंसाशाह, पेथड़शाह, कर्मचन्द बच्छावत, जगत सेठ, जेसलमेर के बापना (पटुवा) बंधु इत्यादि ऐसे २ महानपुरुषों के उल्लेखनीय नाम मिलते हैं जिन्होंने लाखों रुपये खर्च करके बड़े २ संघ निकलवाये, शत्रुंजय आदि बड़े २ तीर्थों का पुननिर्माण करवाया, प्रतिमाओं की प्रतिष्ठाएँ कीं, शास्त्र भंडार भरवाये, अकाल पीड़ितों के लिये अस के भंडार खोल दिये, इत्यादि जितने भी महान और उदारतापूर्ण बातें हो सकती हैं, वे सब हमें इस जाति के इतिहास में देखने को मिलती हैं । धर्म में इतनी गहरी भनुभूति रखने पर हमें यह विशेषता इस जाति के लोगों में देखने को मिलती है कि किसी भी प्रकार की धार्मिक गुलामी और सङ्कीर्णता के चक्कर में ये लोग न फंसे और यही कारण है कि अहिंसा धर्म का पालन करनेवाली इस जाति ने युद्ध के मैदान में हजारों लोगों को तलवार के
राजनैतिक प्रतिभा
धार्मिक जगत में