________________ सिंहावलोकन कर देते हैं। मगर बुद्धिमानी का अब यह तकाजा है कि समाज के आर्थिक वैभव की रक्षा के लिए इस प्रकार की सभी सामाजिक-फिजूल खर्थियों का अन्त किया जाय। सम्प्रदाय भेद ही की तरह इस जाति में समय 2 पर कुछ ऐसे सामाजिक भेद भी उत्पन्न हो गये जिसकी वजह से यह जाति कई टुकड़ों में विभिन्न होगई। आज इस जाति में बीसा, दस्सा, पांचा, अया आदि कई भनेकों भेद हो रहे हैं और कहीं बेटी व्यवहार बन्द है तो कहीं रोटी दस्सा बीसा आदि भेद व्यवहार बन्द है. और इन सब भेदों का मनुष्यता के नाम पर समर्थन किया जाता है। इन भेदों के सम्बन्ध में जो किम्बदन्तियां हैं उनसे पता चलता है कि बहुत साधारण घटनाओं के द्वारा ये भेद प्रभेद अस्तित्व में आये हैं, मगर आज संसार के अन्दर ऐसे युग का प्रादुर्भाव हो रहा है कि जिसमें मनुष्य से मनुष्य को जुदा करने वाले ऐसे सभी भेदभाव नष्ट हो जाएंगे। हमें हर्ष है कि पंजाब के भोसवाल समाज ने इस लाइन में काफी पैर बढ़ाया है. और वहां इस्सों बीसों में शादी विवाह प्रचलित होगये हैं, हमें आशा है कि सारे भारत का ओसवाल समाज इस भेद भाव को नष्ट करने की ओर अग्रसर होगा। ऊपर हम इस इतिहास की भली और बुरी दोनों बाजुओं पर काफी प्रकाश डाल चुके हैं / अब भन्त में हम इस जाति के प्रकाशमान युवकों से यह अपील करना चाहते हैं इस समय सारा संसार परि वर्तन के प्रवल चक्र में पड़ा हुआ है। राज्य, धर्म, समाज और पूंजी की सभी नवयुवकों से अपील संस्थाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे हैं। मनुष्य, स्वार्थ, जातीयता और राष्ट्री __ यता से भी ऊंचा उठकर अखिल मानवीयता के समीप पहुँचने के लिए प्रयत्नशील हो ऐसी स्थिति में उनके ऊपर भी कार्यक्रम का बहुत बड़ा बोझा आता है। यदि वे ऐसी स्थिति में भी सावधानी के साथ अपने सामाजिक रोगों की चिकित्सा के लिए तय्यार न हुए, तो जाति का जो भयङ्कर नसान होगा उसका उत्तरदायित्व उन्हीं पर आवेगा। इस समय उनका पवित्र कर्तव्य उन्हें इस बात का तकाजा कर रहा है कि वे अखिल भारतवर्षीय ऐसे ओसवाल नवयुवकों का एक विशाल संगटन करें जो समानशील और समान विचार वाले हों। जब तक एक बलवान् संगठन की ताकत उनके पीछे नहीं होगी तब तक एक व्यक्तिगत उत्साह और जोश से किये हुये कार्यों का कोई भी महत्व और प्रभाव न होगा। सबसे बड़ी कठिनाई हमारे नवयुवकों के सामने यही आती है, कि जोश और उत्साह में भाकर वे जो भी काम करते हैं कोई भी मजबूत संगठन उनका समर्थन नहीं करता और इसी कारण चारों ओर से हास्या. स्पद बन कर वे निरुत्साही हो जाते हैं। अगर उनके पीछे कोई मजबूत संगठन उन्हें उत्साह प्रदान करने वाला हो तो वे बहुत कुछ कार्य कर सकते हैं। इस लिए एक ऐसे बड़े संगठन की बहुत बड़ी आवश्यकता है, और इस समय सारे भारत के पोसवाल नवयुवकों को ऐसे महान् संगठन को बनाने के लिये पूरी शक्ति से जुटजाना चाहिए।