Book Title: Oswal Jati Ka Itihas
Author(s): Oswal History Publishing House
Publisher: Oswal History Publishing House

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Page 1404
________________ सिंहावलोकन शिखर पर आरूद करने के लिये जिन २ गुणों और प्रतिभाओं की आवश्यकता होती है वह ओसवाल जाति में थी। इतना होने पर भी इस जाति का अक्षय प्रताप इतिहास के पृष्ठों पर अधिक पतन का प्रारम्भ समय तक टिका न रह सका, और उन्हीं महान् पुरुषों के वंशज धीरे २ गिरते हुए आज ऐसी कमजोर स्थिति में पहुँच गये, इसका कारण क्या ? क्या यह केवल भाग्य का फेर है? क्या यह केवल विधि की विडम्बना है ? या इसके अन्तर्गत भी कोई रहस्य है ? इतिहास स्पष्ट रूप से घोषित करता है कि संसार में बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता, हर एक छोटी से छोटी घटना के अन्त काल में भी उसका मूल भूत कारण विद्यमान रहता है। अगर ओसवाल जाति उत्थान के ऊँचे शिखर पर पहुंची, तो उसकी जड़ में भी कई महत्वपूर्ण तत्व विद्यमान थे और अगर आज वह अपनी स्थिति से इतनी नीचे गिर गई, तो उसके अन्दर भी उतने ही मजबूत कारण हैं। नीचे हम उन्हीं में से कतिपय कारणों पर संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयत्न करते हैं। ___ इस जाति के पतन का पहला कारण जो हमें इतिहास के पृष्टों पर दिखलाई देता है, वह मुत्सुद्दियों को पारस्परिक फूट है। राजस्थान के ओसवाल मुत्सुद्दी राजनीतिज्ञ थे, वीर थे, स्वामि भक्त थे, अपने स्वामी के लिए हंसते २ अपनी जान पर खेलजाना उनके लिए रोज की मामूली बात मुत्सुद्दियों की पारस्परिक फूट थी, इन सब गुणों के होते हुए भी उनमें बन्धु विद्रोह की अगन बहुत जोरों से प्रज्वलित थी, अपने भाइयों के उत्कर्ष को सहन करना उनके लिए बहुत कठिन था, और यही कारण था, कि इन लोगों के बीच में हमेशा भयङ्कर षड्यंत्र चला करते थे। जहाँ कोई एक दीवान हुआ, तो उसको विरुद्ध पार्टी वाले, उसीके भाई, हर तरह से उसका नाश करने की कोशिश में लग जाते थे। ऐसी कई दुःखपूर्ण दुर्घटनाएँ हमें इतिहास में देखने को मिलती हैं, कि राजनैतिक षड्यंत्रों में पड़कर समय २ पर जिन बड़े २ मुत्सुद्दियों का चूक (कतल) हुआ उन षडयंत्रों में उन्हीं के सजातीय सब से अधिक लीडिंग पार्ट ले रहे थे। इन्हीं घात प्रतिघातों से इस जाति की उन्नति में बहुत ठेस पहुंची । इसी प्रकार इस जाति के पतन का दूसरा कारण मुत्सुद्दी क्लॉस का नकली आडम्बर और झूठा अभिमान है। घर में बेशक चूहे दण्ड पेलते हों, खाने को फाकाकशी हो, मुत्सुद्दी क्लॉस का व्यक्ति इन सब कष्टों को सहन कर लेगा, मगर व्यापार के द्वारा अपनी आजीविका को उपार्जन करने में अपनी बहत बड़ी बेइजती समझेगा वह दस रुपये की राज्य की नौकरी करना पसन्द करेगा, मगर स्वतंत्र व्यवसाय की कल्पना भी उसके मस्तिष्क को दुःखदायी होगी। इसका भयङ्कर परिणाम यह हो रहा है कि इन्ही रियासतों में जहाँ पर किसी समय इन लोगों के पूर्वजों ने राजाओं तक को अपने एहसानमन्द बनाए थे, वहीं इन लोगों की बहुत खराब स्थिति हो रही है, और धीरे २ इनकी प्रतिष्ठा और इजत भी कम होती जा रही है, और निर्माल्य पदार्थों की तरह ये अपने जीवन को बिता रहे हैं। फिर भी मूंछ पर चांवल ठहराने की इनकी नकली ऐंठ आज भी कायम है। इस जाति के पतन का दूसरा जबर्दस्त कारण इसके अन्दर पैदा हुई साम्पदायिकता और धार्मिक मतभेद हैं। सच पूछा जाय तो इसी जहरीले कारण ने आज इस जाति को रसातल में पहुंचा दिया है। हम तो स्पष्ट रूप से निःसंकोच और निर्भीक होकर यह घोषित कर देता चाहते हैं कि ओसवाल जाति उत्थान के इतने ऊँचै शिखर पर पहुंची उसका प्रधान कारण भी तत्कालीन जैनाचार्य थे और आज

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