Book Title: Oswal Jati Ka Itihas
Author(s): Oswal History Publishing House
Publisher: Oswal History Publishing House

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Page 1370
________________ ओसवाल जाति का इतिहास पुत्र हजारीमलजी तथा जुहारमलजी संवत् १९०१ में तथा बड़े पुत्र रूपचंदजी संवत् १९०६ में उत्तराण (खानदेश) आये । तथा यहाँ इन भाइयों ने व्यवसाय आरम्भ किया। सिंघी रूपचन्दजी का खानदान-आप उत्तराण से संवत् १९०७ में खेड़गाँव चले आये तथा वहाँ आपने अपना कारवार जमाया। आपके मोतीरामजी, बच्छराजजी तथा गोविन्दरामजी नामक ३ पुत्र हुए। इन तीनों भाइयों के हाथों से इस परिवार के व्यापार तथा सम्मान की वृद्धि हुई । इन बन्धुओं का परिवार इस समय अलग २ व्यापार कर रहा है। सिंघी मोतीरामजी संवत् १९६० में स्वर्गवासी हुए। आपके नाम पर सिंघी चुन्नीलालजी केरिया (मेवाड़) से दत्तक आये। आपका जन्म संवत् १९३३ में हुआ। आप खानदेश के ओसवाल समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। भुसावल, जलगाँव तथा पाचोरा की जैन शिक्षण संस्थाओं में आप सहायता देते रहते हैं। आपके पुत्र दीपचन्दजी तथा जीपरूलालजी हैं। आप दोनों का जन्म क्रमशः संवत् १९५२ तथा ६२ में हुआ। दीपचंदजी सिंधी अपना व्यापारिक काम सम्हालते हैं, तथा जीपरूलालजी बी० ए०, पूना में एल० एल० बी० में अध्ययन कर रहे हैं। आप समझदार तथा विचारवान् युवक हैं। आपके यहाँ "मोतीराम रूपचंद” के नाम से कृषि, बैंकिंग तथा लेनदेन का व्यापार होता है। बरखेड़ी में आपकी एक जीनिंग फेक्टरी है। दीपचन्दजी के पुत्र राजमलजी, चांदमलजी तथा मानमलजी हैं। सिंघी बच्छराजजी-आप इस खानदान में बहुत नामी व्यक्ति हुए। आपने करीब २० हजार रुपयों की लागत से पाचोरे में एक जैन पाठशाला स्थापित कर उसकी व्यवस्था ट्रस्ट के जिम्मे की। आपने पाचोरे में जीनिंग प्रेसिंग फेक्टरी खोलकर अपने व्यापार और सम्मान को बहुत बढ़ाया। संवत् १९७७ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र तोतारामजी, हीरालालजी स्वर्गवासी हो गये हैं । और कपूरचंदजी तथा लक्खीचंदजी विद्यमान हैं। इन भाइयों का व्यापार १९७७ में अलग २ हुआ। सिंघी कपूरचंदजी, "कपुरचंद बच्छराज" के नाम से पाचोरे में रुई का व्यापार करते हैं तथा यहाँ के प्रतिष्ठित व्यापारी माने जाते हैं। आपके सुगनमलजी तथा पूरनमलजी नामक २ पुत्र हैं। इसी तरह तोताराम जी के पुत्र शंकर लालजी, गणेशमलजी, प्रतापमलजी तथा हीरालालजी के पुत्र मिश्रीलालजी, कनकमलजी, खुशालचंदजी और सुवालालजी और सिंधी गोविन्दरामजी के पुत्र छगनमलजी, ताराचंदजी, विरदीचंदजी तथा सरूपचन्दजी खेड़गाँव में व्यापार करते है। सेठ हजारीमलजी तथा जुहारमलजी सिंघी का परिवार-इन बन्धुओं का परिवार उत्तराण में निवास करता है। आप दोनों बन्धुओं के हाथों से इस परिवार के व्यापार और सम्मान को विशेष वृद्धि हुई। सेठ जुहारमलजी के पुत्र सेठ किशनदासजी और सेठ हजारीमलजी के सेठ औंकारदासजी, चुन्नीलालजी तथा छोटमलजी नामक ३ पुत्र हए । सेठ किशनदासजी ख्याति प्राप्त पुरुष हए। आप बड़े कर्तव्यशील व समझदार सजन थे। सम्बत् १९५३ में आपका स्वर्गवास हुआ। सिंघी ओंकारदासजी संवत् १९७४ में स्वर्गवासी हुए। आपके पन्नालालजी, माणिकचन्दजी, पूनमचन्दजी, दलीचन्दजी, रतनचन्दजी तथा रामचन्दजी नामक ६ पुत्र विद्यमान हैं। इनमें सेठ माणिकचन्दजी, किसनदासजी के नाम पर दत्तक गये हैं। ठ माणिक चन्दजी सिंघी-आपका जन्म सम्बत् १९४५ में हुआ। आपने सम्वत् १९७२ से साहकारी व्यवसाय बन्द कर कृषि तथा बागायात की ओर बहुत बड़ा लक्ष दिया। आपका विस्तृत बगीचा ६७२

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