Book Title: Oswal Jati Ka Itihas
Author(s): Oswal History Publishing House
Publisher: Oswal History Publishing House

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Page 1374
________________ मोसवाल जाति का इतिहास हैं। धार्मिक मामलों से भी आप लोगों के उदार विचार हैं । आपने दृढ़ता पूर्वक परिश्रम कर चचवड़ में एक अबोध कन्या को दीक्षा दिये जाने के कार्य को रुकवाया था। श्री हरलालजी का विवाह सन् १९३२ में अजमेर में वर्द्धमानजी बांठिया की पुत्री श्रीमती दीपकुमारी (उर्फ सरकादेवी) के साथ बहुत सादगी के साथ हुआ । इस विवाह में तमाम फुजूल खर्चियां रोककर लगभग ३००) रुपयों में सब वैवाहिक काम पूरा किया गया। तथा शुद्ध खद्दर का व्यवहार किया गया। श्री दीपकुमारी बलदोटा सन् १९३० में विदेशी वस्त्रों की पिकेटिंग करने के लिये ३ । ४ वार जेल गई। लेकिन १५ वर्ष की अल्पायु होने के कारण आप दो चार दिनों में ही छोड़ दी गई। . लाला रणपतराय कस्तूरीलाल बम्बेल का खानदान, मलेर कोटला इस परिवार के मालिकों का मूल निवास स्थान सुनाम का है। आप जैन म्वेताम्बर स्थानक वासी सम्प्रदाय को मानने वाले हैं । इस खानदान में लाला कानारामजी के पश्चात् क्रमशः छज्जूरामजी, मोतीरामजी तथा लाला रणपतरायजी हए । लाला रणपतरायजी इस कुटुम्ब में बड़े योग्य व्यक्ति होगये हैं। आप सौ साल पूर्व मलेरकोटला में सुनाम से आये थे । आपने अपने परिवार की इज्जत व दोलत को बढ़ाया। आपके पुत्र लाला मुकुंदीलालजी का स्वर्गवास संवत् १९५० में होगया । आपके लाला कस्तूरीलालजी, मिलखीराम जी एवं चिरंजीलालजी नामक तीन पुत्र हुए। लाला कस्तूरीलालजी का जन्म १९४६ का था । आप बड़े सज्जन और धार्मिक पुरुष थे। आपका संवत १९७९ में स्वर्गवास होगया है। आपके लाला बचनाराम जी नामक एक पुत्र हैं। लाला मिलखीरामजी का जन्म संवत् १९४८ में हुभा। आप यहां की बिरादरी के चौधरी हैं। आपका यहाँ के राज दरबार में अच्छा सम्मान है। आपके प्रेमचन्दजी नामक एक पुत्र है। लाला चिरंजीलालजी का जन्म संवत् १९५० में हुआ। आप भी मिलनसार सज्जन हैं। आपके मनोहरलालजी तथा शीतलदासजी नामक दो पुत्र हैं। ___ इस परिवार की इस समय दो शाखाएँ होगई हैं। एक फर्म पर मेसर्स कस्तूरीलाल मिलखी राम के नाम से तथा दूसरी फर्म पर चिरंजीलाल मनोहरलाल के नाम से व्यापार होता है। सेठ फतहलाल मिश्रीलाल वेद, फलोदी इस परिवार के पूर्वज सेठ परशुरामजी वेद ने फलोदी से ४४ मील दूर रोहिणा नामक स्थान से आकर सम्वत् १९२५ में अपना निवास फलोदी में बनाया । आपके पुत्र बहादुरचन्दजी तथा मुलतानचंदजी हुए। यह परिवार स्थानकवासी सम्प्रदाय का माननेवाला है। सेठ मुल्तानचन्दजी के चुनीलालजी, छोगमलजी, हजारीमलजी, आईदानजी तथा सूरजमलजी नामक ५ पुत्र हुए। इनमें सेठ सूरजमलजी तथा भाईदानजी ने बम्बई तथा ऊटकमंड में दुकानें खोली। सेठ सूरजमलजी फलोदी के स्थानकवासी सम्प्रदाय में नामांकित व्यक्ति हो गये हैं। संवत् १९७४ में आप स्वर्गवासी हुए। सेठ आईदानजी के जेठमलजी फतेलालजी, विजयलालजी, मिश्रीलालजी तथा कंवरलालजी नामक ५ पुत्र हुए। इनमें सेठ मिश्रीलालजी, सूरजमलजी वेद के नाम पर दत्तक गये हैं। वर्तमान में इन बंधुओं में जेठमलजी, विजयलालजी तथा मिश्रीलालजी विद्यमान हैं। सेठ जेठमलजी फलोदी में ही रहते हैं, तथा विजयलालजी और मिश्रीलालजी मे इस कुटुम्ब के व्यापार तथा सम्मान

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