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मावत घेमावत गौत्र की उत्पत्ति कहा जाता है कि संवत् ९०१ में बीजापुर ( गोदवाद) पास हस्ती कुंडी नामक स्थान में राजा दिगवत् रात्र करते थे। इनको जैन मुनि श्री बलभद्राचार्य ने जैनधर्म अंगीकार कराया। इसके कई पीढ़ियों बाद भांडाजी हुए जिन्होंने गिरनार व शत्रुजय के संघ निकाले। इनके कई पीढ़ियों बाद संवत् १९..के लगभग धेमाजी और मोटाजी हुए। इन्होंने बाली में मनमोहन पार्श्वनाथजी का मन्दिर बनाया। इनका परिवार घेमाक्त, और बोडावत कहलाता है। यह कुटुम्ब हटुंडिया राठोर हैं, तथा शिवगंज, सिरोही भोर सादनी में रहते हैं।
सेठ छजमलजी घेमावत का परिवार, सादड़ी इस खानदान के पूर्वज यमाजी घेमावत के पुत्र कपूरचन्दजी घेमावत लगभग संवत १९०५ में व्यवसाय के लिये सूरत गये तथा सूरत से ३ मील की दूरी पर मारे गाँव नामक स्थान में लेनदेन का व्यापार शुरू किया। संवत् १९५॥ में भाप स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र सेठ छजमलजी हुए।
सेठ छजमलजी घेमावत-बापका जन्म संवत् १८९1 में हुआ। आपने संवत् १९४८ में बम्बई में मदे की दुकान खोली । तथा आपही ने इस खानदान के जमीन जायदाद को विशेष बढ़ाया। भाप बने सरल तथा धर्म में श्रद्धा रखने वाले पुरुष थे। संवत् १९७० में भाप स्वर्गवासी हुए। आपके नशमलवी, कस्तूरचन्दजी, मूलचन्दजी, जसराजजी तथा दीपचन्दजी नामक ५ पुत्र हुए। इन बंधुओं में से कस्तूरचन्दजी संवत् १९६० में तथा बथमलजी संवत् १९८८ में स्वर्गवासी हुए। इन पांचों भाइयों ने इस दुम्ब व्यापार, सम्मान तथा सम्पत्ति को बहुत बढ़ाया। इन बंधुओं का कारवार इधर २ साल पूर्व अलग हो गया है। तथा सब भाइयों का बम्बई में अलग १ कपड़े का व्यापार होता है। सादड़ी में आप लोगों की बड़ी हवेलियाँ बनी हुई है। तथा गोडवाद प्रान्त के प्रतिष्ठित परिवारों में यह परिवार माना जाता है। इस परिवार में सेठ नथमलजी गोड़वाड के प्रतिष्ठा सम्पन महानुभाव थे। तथा इस समय सेठ मूलचन्द और दीपचन्दजी गोडवाड प्रांत के वजनदार पुरुष माने जाते हैं। भाप दोनों भाइयों का जन्म क्रमशः संवत् १९३२ तथा १९१० में हुमाइसी तरह आपके मसले बंधु सेठ जसराजजी का जन्म संवत् १९३६ में हमा।
वर्तमान में इस कुटुम्ब में सेठ मूलचन्दजी, सेठ जसराजजी, सेठ दीपचन्दजी तथा सेठ नथमलजी के पुत्र निहालचन्दजी और सेठ कस्तूरचन्दजी के पुत्र चन्दनमलजी मुख्य हैं। सेठ मूलचन्दजी के पुत्र सांगरमलजी, जसराजजी के पुत्र मोटरमलजी, हमीरमबजी तथा जुगराजजी और दीपचन्दजी के पुत्र सहस मात्री तथा लखमीचन्दजी हैं। इसी प्रकार निहालचन्दजी के पुत्र कालूरामजी तथा सागरमलजी के पुत्र विमचन्दजी पढ़ते हैं। और सहसमलजी के पुत्र हस्खामलजी हैं।
इस खानदान की भोर से सार्वजनिक तथा धार्मिक कार्यों की ओर उदारता से सम्पत्ति लगाई गई है। संवत् १९५९ में कन्या शाला का मकान बनाया तथा उसका व्यय आज तक आप ही दे