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ओसवाल जाति का इतिहास
राजवैद्य हीराचंद रतनचन्द रायगांधी का खानदान, जोधपुर
रायगाँधी देपालजी के पूर्वज गुजरात में गाँधी (पसारी ) का व्यापार तथा वैद्यकी का कार्य करते थे। इसलिये ये "रायगाँधी" कहलाये। गुजरात से देपालजी नागोर आये। इनके पौत्र गहराजजी ख्याति प्राप्त वैद्य थे। संवत् १५२५ में इन्होंने देहली के तत्कालीन लोदी बादशाह को अपने इलाज से आराम किया। कहा जाता है कि इनकी प्रार्थना से बादशाह ने शत्रुजय के यात्रियों पर लगनेवाला कर माफ किया। इनकी १० वीं पीढ़ी में केसरीचंदजी प्रतिष्ठित वैद्य हुए। इनको संवत् १८०८ में महाराजा बखतसिंहजी नागोर से जोधपुर लाये, और जागीर के गाँव देकर बसाया, तब से यह खानदान जोधपुर में "राज्यवैद्य" के नाम से मशहूर हुआ। केशरीसिंहजी के बाद क्रमशः बखतमलजी, वर्धमानजी सरूपचन्दजी, पन्नालालजी, तथा मालचन्दजी हुए, उपरोक्त व्यक्तियों को समय २पर १० गाँव जागीरी में मिले थे। संवत् १८९३ में मालचन्दजी के गुजरने के समय उनके पुत्र इन्द्रचन्दजी किशनचन्दजी तथा मुकुन्दचन्दजी नाबालिग थे, अतः बागी सरदारों ने इनके गाँव दबालिये। इनके सयाने होनेपर दरबार ने गाँवों की एवज में तनख्वाह करदी। समय २ पर इस खानदान को राज्य की ओर से सिरोपाव भी मिलते रहे। गाँधी बखतमलजी के पौत्र गदमलजी तथा मालचन्दजी के छोटे भ्राता प्रभूदानजी प्रसिद्ध वैद्य थे। किशनचन्दजी तथा मुकुन्दचन्दजी को वैद्यक का अच्छा अनुभव था। आप क्रमश संवत् १९५१ तथा १९६४ में स्वर्गवासी हुए। मुकुन्दचन्दजी के माणकचन्दजी, हीराचन्दजी तथा रतनचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए, इनमें संवत् १९७४ में माणकचन्दजी स्वर्गवासी हुए। हीराचन्दजी का जन्म सम्वत् १९२५ में हुआ, इनके पुत्र चाँदमलजी हैं। रायगाँधी चाँदमलजी का जन्म संवत् १९५० में हुआ इनको स्टेट की ओर से जाती सनख्वाह मिलती है, आपको वैद्यक का अच्छा ज्ञान है। सनातन धर्म सभा ने आपको "वैद्य भूषण की पदवी" दी है । आपके पुत्र मानचन्दजी कलकत्ता में वैद्यक तथा डाक्टरी की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
रायगाँधी रतनचंदजी का जन्म संवत् १९४२ में हुआ। आपको भी स्टेट से जाती तनख्वाह मिलती है आपके पुत्र वैद्य पदमचन्दजी हैं । डाक्टर परमचंदजी वैद्य का जन्म संवत् १९६२ में हुआ, सन् १९२९ में आपने इन्दौर से डाक्टरी परीक्षा पास की, इस परीक्षा में भाप प्रथम गेट में सर्व प्रथम उत्तीर्ण हुए । और आप इसी साल जोधपुर स्टेट में मेडिकल ऑफीसर मुकर्रर हुए इस समय आप बाड़मेर डिस्पेंसरी में सब असिस्टेंट सर्जन के पद पर हैं। सन् १९३० में आपने जोधपुर दरबार के साथ देहली में उनके परसनल फिजिशियन की सियत से कार्य किया । आप डाक्टरी में अच्छा अनुभव रखते हैं। डिपार्टमेंट से व जनता से आपको कई अच्छे सार्टीफिकेट मिले हैं । नागोर की जनता ने आपको मानपत्र तथा केस्केट भेंट किया था।
सेठ ताराचन्द वख्तावरमल गांधी, हिंगनघाट इस परिवार के पूर्वज गांधी ताराचन्दजी नागोर से पैदल मार्ग द्वारा लगभग १०० साल पूर्व हिंगनघाट आये। तथा यहाँ लेनदेन का व्यापार शुरू किया। आपके वख्तावरमलजी, धनराजजी तथा हजारीमलजी नामक ३ पुत्र हुए । गांधी वख्तावरमलजी समझदार, तथा प्रतिष्ठित पुरुष थे। हिंगनघाट की जनता में आप प्रभावशाली व्यक्ति थे। आपने व्यापार की वृद्धि कर इस दुकान की शाखाएं नागपुर कामठी, तुमसर, वर्धा, भंडारा तथा चांदा आदि स्थानों में खोली। आपका संवत् १९४४ में स्वर्गवास
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