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गांधी
का भार संवत् १९४० से आपने लिया। तथा उसकी नई बिल्डिंग व प्रतिष्ठा कार्य आपही के समय में सम्पन्न हुभा। इसी तरह आपकी प्रेरणा से सिवनी, बालाघाट, कटंगी तथा सदर में जैन मन्दिरों का निर्माण हुआ। आप बड़े प्रभावशाली पुरुष थे। आपके छोटे भाई आपके साथ व्यापार में सहयोग देते रहे। संवत् १९७९ में आप स्वर्गवासी हुए । भापके नेमीचन्दजी, रिखवदासजी तथा मोतीलालजी नामक ३ पुत्र हुए । इनमें नेमीचन्दजी, मूलचन्दजी के नाम पर दत्तक गये। मिलापचन्दजी के राजमलजी माणिकचन्दजी तथा हीरालाल जी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें माणिकवन्दजी स्वर्गवासी होगये।
इस समय इस परिवार में सेठ राजमलजी, रिखबदासजी, मोतीलालजी, हीरालालजी तथा रतनचन्दजी मुख्य हैं। सेठ मोतीलालजी शिक्षित तथा वजनदार सज्जन हैं। सन् १९२१ से आप म्युनिसिपल मेम्बर हैं। जबलपुर की हरएक सार्वजनिक संस्थाओं में आप भाग लेते रहते हैं। सेठ रिखवदासजी के पुत्र हुकुमचन्दजी व्यापार में भाग लेते हैं और रतनचन्दजी सेठ नेमीचन्दजी के नाम पर दत्तक गये हैं, तथा ईसरचन्दजी व प्रेमचन्दजी छोटे हैं। राजमलजी के पुत्र मगनमलजी एवं मोतीलालजी के खुशहालचन्दजी हैं। यह परिवार जबलपुर में प्रतिष्ठा सम्पन्न माना जाता है।
गाँधी गाँधी मेहता डाक्टर शिवनाथचंदजी, जोधपुर भाटों की ख्यातों से पता चलता है कि जालौर के चौहान वंशीय राजा लाखणसी से भण्डारी और गांधी मेहता वंशों की उत्पत्ति हुई। लाखणसीजी के ११ पीढ़ी बाद पोपसीजी हुए जो अपने समय के आयुर्वेद के विख्यातज्ञाता थे। कहा जाता है कि उन्होंने संवत् १३३८ में जालोर के रावल सांवन्तसिंह जी को एक असाध्य व्याधि से आराम किया इससे उक्त रावलजी ने इन्हें "गान्धी" की उपाधि से विभू. षित किया। पोपसीजी के १३ पुश्त बाद रामजी हुए जो बड़े वीर और दानी थे। रामजी की पांचवी पीढ़ी में शोभाचन्दजी हुए जो बड़े वीर और नीतिज्ञ थे। आप पोकरण के एक युद्ध में वीरतापूर्वक लड़ते हुए काम आये। उनके स्मरण में पोकरण ठाकुर साहब ने वहाँ देवालय बनवाया है, जहाँ लोग "जान" के लिये जाते हैं। आपके पौत्रों में आलमचन्दजी बड़े वीर हुए। आप पोकरण ठाकुर सवाईसिंहजी के प्रधान थे और मूंडवे मुकाम पर अमीरखाँ से युद्ध करते हुए धोके से मारे गये । आपके स्मारक में उक्त स्थान पर छत्री बनी हुई है। शोभाचन्दजी के कनिष्ट भ्राता रूपचन्दजी मराठों के साथ युद्ध करते हए वीरगति को प्राप्त ह। आपके पश्चात् इसी वंश के रत्नचन्दजी और अभयचन्दजी पोकरण ठाकुर साहब के पक्ष में युद्ध करते हुए काम आये। इस वंश में कई सतियाँ हुई।
डाक्टर शिवनाथचन्दजी इसी प्रतिष्ठित वंश में हैं। संवत् १९४८ में आपका जन्म हुआ। १३ वर्ष की अवस्था में आपके पिता देवराजजी का देहान्त होगया। भारने इन्दौर में स्टेट की ओर से डाक्टरी की शिक्षा प्राप्त की। जोधपुर राज्य के देशी आदमियों में आप सबसे पहले डॉक्टर हुए । इस समय आप वेक्सीनेशन सुपण्टेिण्डेण्ट हैं। आप जोधपुर की ओसवाल यंगमेन्स सोसायटी के कई वर्ष तक मन्त्री रहे। आप अत्यन्त लोकप्रिय और निःस्वार्थ डोक्टर है और सार्वजनिक काय्यों में उत्साह से भाग लेते है। आपके बड़े पुत्र मेहतापचन्दजी बी० कॉम बड़े उत्साही और देशभक्त युवक हैं।