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मोधावत और दनेचा
६ पुत्र विद्यमान हैं। मोतीलालजी रामपुरा में व्यापार करते हैं। इनके पुत्र नानालालजी, ते जमलजी तथा शांतिलालजी हैं। चौधरी बसंतीलालजी रामपुरे के सर्व प्रथम मेट्रिक्युलेट हैं । सन् १९१५ में मेट्रिक पास करते ही आप जैन हॉईस्कूल के सेक्रेटरी नियुक्त हुए, और तब से इसी पद पर कार्य कर रहे हैं।
बाबूलालजी चौधरी-आपने इस परिवार में अच्छी उन्नति की। आपका जन्म संवत् १९५९ में हुआ। मेट्रिक तक अध्ययन कर आपने इन्दौर स्टेट की वकीली परीक्षा पास की । आज कल आप गरोठ में वकालात करते हैं। तथा रामपुरा भानपुरा जिले के प्रसिद्ध वकील माने जाते हैं। इतनी छोटी वय में ही आपने कानुनी लाइन मे अच्छी दक्षता प्राप्त कर अपनी आर्थिक स्थिति को उन्नत बनाया है। अ छोटे बंधु दरबार आफिस में क्लार्क है। तथा उनसे छोटे चौधरी बहुतलालजी इस समय एल. एल. बी.
और में मदनलालजी इन्टर में पढ़ रहे हैं। इसी तरह इस परिवार में रतनलालजी के पुत्र गेंदालालजी तथा छौटेलालजी इन्दौर में व्यापार करते है। यह परिवार श्वे. जैन स्थानकवासी आन्नाय को मानता है।
. सेठ मेघजी गिरधरलाल गोधावत, छोटी सादड़ी
इस परिवार के पूर्वज सेठ मेघजी बड़े प्रतिभावान सजन थे। आपके पौत्र सेठ नाथूलालजी ने ईस खानदान की मान मर्यादा तथा सम्पत्ति में बहुत उन्नति की। भाप बड़े वानी तथा व्यापारदक्ष पुरुष थे। अफीम के व्यापार में आपने सम्पत्ति उपार्जित की थी। मापने सवा लाख रुपयों के स्थाई फंड से "श्री नाथूलाल गोधावत जैन भाश्रम" नामक एक आश्रम की स्थापना की थी। सम्बत् १९७६ की ज्येष्ठ बदी.को आप स्वगवासी हुए। आपके पुत्र हीरालालजी का आपकी विद्यमानता में ही स्वर्गवास हो गया था। इस समय सेठ नाथूलालजी के पौत्र सेठ छगनलालजी विद्यमान हैं। आप सजन तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। भापका परिवार मालवा तथा मेवाड़ के ओसवाल समाज में प्रधान धनिक माना जाता है। आप स्थानकवासी आन्नाव के माननेवाले सज्जन हैं। आपके यहाँ साड़ी में लेनदेन का व्यापार होता है, तथा बम्बई-धनजी स्ट्रीट में साहुकारी और आढ़त का व्यापार होता है।
दनेचा (कोहरा) सेठ आईदान रामचन्द्र दनेचा (बोहरा ) बंगलोर इस खानदान का मूल निवास मेसिया (मारवाड़) है। वहाँ से इस परिवार ने अपना मिवास व्यावर बनाया। आप स्थानकवासी आम्नाय के मानने वाले सज्जन हैं। इस खानदान में संठ ब्राईदानजी प्रतापी पुरुष हुए। . सेठ आईदानजी-आप लगभग १०० वर्ष पूर्व मारवाड़ से पैदल राह चलकर सिकन्दराबाद आये तथा रेजिमेंटल बैंस का कार्य आरम्भ किया। वहाँ से संवत् १९१० में आप बंगलोर आये। उस समय बंगलोर में मारवाड़ियों की एक भी दुकान नहीं थी। आपने कई मारवाड़ी कुटुम्बों को यहाँ आबाद करने में मदद दी। थोड़े समय बाद आपने अगरचन्दजी बोहरा की भागीदारी में "भाईदान अगरचन्द"