________________
ओसवाल जाति का इतिहास
जी के तृतीय पुत्र सुजानसिंहजी ने शाहपुरा बसाया, उस समय वे इस परिवार के पूर्वज सेठ टेकचन्दजी को अपने साथ शाहपुरा में लाये थे। इनके पुत्र सरूपचन्दजी, अनोपचन्दजी तथा मंसारामजी हुए। इनमें सरूपचन्दजी तथा अनोपचन्दजी शाहपुरा रियासत के बैंकर थे। आवश्यकता पड़ने पर इन्होंने रियासत को आर्थिक सहायताएँ दी थों । “न्याय" का कुल काम इनके घर पर होता था। बनेड़ा स्टेट में भी यह परिवार बहुत समय तक बैंकर रहा। एक लड़ाई में मदद देने के उपलक्ष में शाहपुरा दरबार ने डाँगी अनोपसिंहजी को कंठी और मर्यादा की पदविया देकर सम्मानित किया था। आपके जेष्ठ पुत्र हमीरसिंहजी को सम्वत् १८९३ में कर्नल डिक्सन ने ब्यावर में बसने के लिये इजत के साथ निमंत्रित किया था। इनसे छोटे भाई चतुरभुजजी, सेठ सरूपचन्दजी डाँगी के नाम पर दत्तक गये। उदयपुर के दीवान मेहता अगरजी तथा मेहता शेरसिंहजी से इस परिवार की रिश्तेदारियाँ थीं। हमीरसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र चंदनमलजी के साथ उनकी धर्मपत्नी सम्वत् १९१४ में सती हुई। आगे चलकर डाँगी चतुर्भुजजी के पुत्र बालचन्दजी और चनणमलजी के दत्तक पुत्र अजीतसिंहजी कमजोर स्थिति में आ गये। जब शाहपुरा दरबार नाहरसिंह जी की दृष्टि में पुराने कागजात आये, तो उन्होंने इस परिवार की सेवाओं पर ख़याल करके डॉगी अजीतसिंह जी के पुत्र जीवनसिंहजी को "जीकारे" का सम्मान बख्शा । दरबार समय २ आपकी सलाह लेते थे। आप बड़े विद्याप्रेमी तथा सजन पुरुष थे । आपके पुत्र अक्षयसिंहजी डॉगी हैं। डॉगी बालचन्दजी के पुत्र सोभागसिंहजी बड़े परोपकारी, हिम्मत बहादुर तथा लोकप्रिय व्यक्ति थे। सम्वत् १९५६ के अकाल में आपने गरीब जनता की बहुत मदद की थी । सन् १९१२ में इनका स्वर्गवास हुआ । इनके पुत्र हरकचन्दजी हैं।
श्री अक्षयसिंहजी डॉगी ने बनारस यूनिवर्सिटी से बी०ए० पास किया। थर्ड ईयर में इकानामिक्स में प्रथम आने के कारण आपको स्कालरशिप मिली । इसी तरह आप हर एक क्लास में प्रथम द्वितीय रहते रहे । बी. ए. पास करने के बाद आप तीन सालों तक शाहपुरा में सिविल जज रहे। इसके बाद आपने एम० ए० और एल एल० बी० की डिगरी प्राप्त की। इस समय आप अअमेर में वकालत करते हैं। आपकी अंग्रेज़ी लेखन शेली ऊँचे दर्जे की है। ओसवाल कान्फ्रेंस के प्रथम अधिवेशन के आप मंत्री थे। सामाजिक सुधारों में आप अग्रगण्य रूप से भाग लेते हैं। आपके पुत्र सुभाषदेव हैं।
प्राचलिया
रामपुरा का आँचलिया परिवार यह परिवार मूल निवासी मारवाड़ का है। वहाँ से कई पुश्त पूर्व यह कुटुम्ब रामपुरे में आकर आवाद हुआ। इस परिवार में आँचलिया सूरजमलजी तथा उनके पुत्र चुनीलालजी कस्टम विभाग में कार्य करते थे। कार्य दक्ष होने के कारण जनता ने आपको चौधरी बनाया । और तब से इनका परिवार "चौधरी" कहलाने लगा। चौधरी चुन्नीलालजी के चम्पालालजी, रतनलालजी तथा किशनलालजी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें चौधरी चम्पालालजी सीधे सादे तथा धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे। भाप आसामी लेन देन का काम करते थे। संवत् १९७६ में ५१ साल की आयु में आप स्वर्गवासी हुए। आपके मोतीलाल जी, बसंतीलालजी, बाबूलालजी, कन्हैयालालजी, बहुतलालजी, तथा मदनलालजी नामक
६४२