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नाहटा
सेठ मुन्तानचंद चौथमल नाहटा, छापर - इस परिवार के पुरुष सेठ खड्गसिहजी के पुत्र हुकमचन्दजी और मानमलजी के पुत्र जोरावरमल जी और मुल्तानचन्दजी करीब ८० वर्ष पूर्व चाइबास नामक स्थान से छापर में आये। इस समय आप लोगों की बहुत साधारण स्थिति थी। आप लोग पहले पहल बंगाल प्रांत के ग्वालपाड़ा नामक स्थान पर गये एवम् हुकुमचन्द मुल्तानचन्द के नाम से अपनी फर्म स्थापित की। इसमें जब अच्छी सफलता रही तब आपने इसी नाम से कलकत्ता में भी अपनी एक ब्रांच खोली। इन दोनों फर्मों से भापको अच्छा लाभ हमा। संवत् १९४९ में आप लोग अलग होगये। इसी समय से हकमचन्दजी के वंशज अपना अलग व्यापार कर रहे हैं। . सेठ जोरावरमलजी का तथा सेठ मुल्तानचन्दजी का स्वर्गवास हो गया। सेठ जोरावरमलजी के पुत्र हुए जिनके नाम सेठ चौथमलजी और तखतमलजी था। इनमें से तखतमलजी सेठ मुस्तानचन्दजी के नाम पर इत्तक रहे। आप दोनों भाइयों ने भी फर्म का योग्यता पूर्वक संचालन किया। इसी समय से इस फर्म पर उपरोक नाम पड़ रहा है। आप दोनों भाई बड़े प्रतिभा संपन्न थे। आपने पान बाज़ार, श्यामपुर, कुईमारी मौ. सरू नगर भादि स्थानों पर भिन्न २ नामों से अपनी शाखाएं स्थापित की। सेठ चौथमलजी का स्वर्गवास होगया। आपके पृथ्वीराजजी, बरदीचन्दजी और कुन्दनमलजी नामक तीन पुत्र हैं। सेठ तखतमलजो इस समय विद्यमान हैं। आपके इस समय ६ पुत्र हैं जिनके नाम मनालालजी, पदमचन्दजी, मोतीलालजी वगैरह हैं। आप सब लोग व्यापार संचालन में भाग लेते हैं। आप लोगों ने मऊनाट मंजन में एक और ब्रांच खोली हैं। जहां स्थानीय बने हुए कपड़े का व्यापार होता है। आप लोग मिलनसार और सज्जन है। बाबू मोतीलालजी बी. ए. में अध्ययन कर रहे हैं । आप करीब तीन साल से भोसवाल नवयुवक के ज्वाइंट सम्पादक हैं। आप कवि भी हैं।
___ आप लोगों का उपरोक्त स्थानों पर भिन्न भिन्न नामों से वैरिज, जूट और कपड़े का व्यापार होता है। आप लौग तेरापन्थी श्वेताम्बर जैन संप्रदाय के अनुयायी हैं।
सेठ उदयचन्दजी राजरूपजी नाहटा, बीकानेर, इस परिवार के पूर्व पुरुषों का मलनिवास स्थान कानसर नामक ग्राम था। वहाँ से ये लोग जलालसर होते हुए डाइँसर नामक स्थान पर आये। यहाँ से फिर सेठ जैतरूपजी के पुत्र उदयचन्दजी, राजरूपजी, देवचन्दजी और बुधमलजी करीब ५० वर्ष पूर्व बीकानेर आकर बसे।
सेठ उदयचन्दजी का परिवार-सेठ उदयचन्दजी इस परिवार में नामांकित व्यक्ति हुए। संवत् १९०० के करीब आप ग्वालपाड़ा (बंगाल) नामक स्थान पर गये एवम् वहाँ अपनी एक फर्म स्थापित की । इसमें आपको बहुत सफलता रही । आपने संवत् १९०५ में यहाँ एक जैन मन्दिर भी श्री संघ की ओर से बनवाया। तथा उसमें अच्छी सहायता भी प्रदान की। आपके पुत्र न होने से भापके नाम पर दानमलजी दत्तक लिये मये । आप विशेष कर देश ही में रहे । आप नि: संतान स्वर्गवासी हो गये अतएव आपके नाम पर मेघराजजनी दत्तक भाये। आजकल आप ही इस फर्म का संचालन करते हैं। माप मिलनसार व्यक्ति हैं। आपके केसरीचन्दजी और बसंतीलालजी नामक दो पुत्र हैं।