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ओसवाल जाति का इतिहास
गया। इनके पौत्र भगवानदासजी, महाराजा जसवंतसिंहजी के साथ काबुल गये थे। भगवानदासजी के पौत्र गोकुलदासजी ने महाराजा अजीतसिंहजी की विखे के समय बहुत सेवा की । अतः इनको सांगासनी नामक ग्राम जागीरी में मिला । संवत् १७६९ में इनको महाराजा अजीतसिंहजी से दीवानगी का सम्मान इनायत हुभा । पुनः इन्होंने महाराजा अभयसिंहजी के समय में संवत् १७४१ में दीवानगी का कार्य किया। इसके प्रपौत्र खेमकरणजी मेड़ते के कोतवाल थे और महाराजा विजयसिंहजी के साथ नागोर के घेरे में सम्मिलित थे। इनके पुत्र मेहता मूलचंदजी तथा मीठालालजी महाराजा भीवसिंहजी तथा मानसिंहजी के समय में मारवाड़ में लम्बे समय तक कई परगनों के हाकिम तथा कोतवाल रहे। आप दोनों बंधुओं को सरकार ने बरसाद देकर सम्मानित किया था।
मेहता मूलचन्दजी के पुत्र मोतीचन्दजी तथा पौत्र रामकरणजी हुए। मेहता रामकरणजी भी हुकूमातें करते रहे। इनके कानमलजी तथा चांदमलजी मामक २ पुत्र हुए। कानमलजी को एक हार रुपया साल बरसोंद मिलती थी। मेहता चांदमलजी के बड़े पुत्र मानमलजी संवत १९०२ में मेड़ते के कोतवाल हुए । इनके छोटे भ्राता जवाहरमलजी थे। मेहता जवाहरमलजी के सुकनमलजी तथा मोहनमलजी मामक २ पुत्र हैं। इनमें मेहता सुकनमलजी, मेहता मानमलजी के नाम पर दत्तक गये हैं। मेहता सुकनमलजी के पुत्र सोहनमलजी बी. ए. एल. एल.बी० में पढ़ रहे हैं।
सेठ भेरुबचजी समदरिया का परिवार, मद्रास
(सुखलालजी, बहादुरमलजी कानमलजी समदरिया) इस खानदान के मालिक ओसवाल जाति के समन्दरिया गौत्रीय श्वेताम्बर जैन समाज के मन्दिर भानाय को मानने वाले सजन हैं । इस परिवार का मूल निवासास्थान नागौर का है। इस खानदान में भेरूवक्षजी समन्दरिया हुए। आप अपने जीवनकाल में नागौर में ही रहे, आप नागौर में बड़े धर्मात्मा पुरुष हो गये हैं। आपका जन्म संवत् १८९२ का था तथा स्वर्गवास संवत् १९४३ में हुआ।
आपके तीन हुए जिनके नाम क्रम से श्री सुखलालजी, बहादुरमलजी तथा कानमलजी हैं। श्री यत सुखलालजी का जन्म सम्बत १९३१ में हमा। आप बड़े प्रतिभाशाली और बुद्धिमान पुरुष हैं। आप संवत् १९४८ में मद्रास आये और यहाँ आकर आपने अपनी बैंकिंग की एक फर्म स्थापित की। आपकी बुद्धिमानी और दूरदर्शिता से आपकी फर्म खूब तरकी करती गई यहाँ तक कि इस समय यहाँ की नामी फर्मों में से यह एक है। श्री सुखलालजी समन्दरिया अपनी जाति की विधवाओं को प्रतिमास बहुत सा रुपया सहायतार्थ देते हैं। मद्रास साहुकार पेठ के मन्दिर की प्रतिष्ठा आपने बहुत उद्योग से पैसा एकत्रित कर करवाई। एवं मापने भी उसमें काफी द्रव्य प्रदान किया है । मद्रास की दादावाड़ी जो पहले एक जङ्गल के रूप में थी, आपके ही प्रयत से वह अब बहत ही रमणीक हो गई है। आपने अपने पास से .था रोगों से इकट्ठा करके करीब साठ सत्तर हजार रुपया इसमें लगाया। सार्वजनिक तथा धार्मिक कामों में आप बहुत दिलचस्पी से भाग लेते हैं। पंचायती तथा जैन भाइयों के झगड़ों को निपटाने में भाप अपने समय का बहुत सा भाग देते हैं। आपके हम समय नौ पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः दूंगरचंदजी